किसानों को उचित दाम दीजिए

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री किसानों की समस्याओं के प्रति सरकार संवेदनशील दिखती है, पर मात्र संवेदनशीलता से बात नहीं बनती है. पाॅलिसी की दिशा भी सही होनी चाहिए. मात्र उत्पादन बढ़ाने से किसान का उद्धार नहीं होगा. साठ के दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश में खेत परती पड़े रहते थे. सिंचाई रहट और ढेकली से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 19, 2016 6:35 AM

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री

किसानों की समस्याओं के प्रति सरकार संवेदनशील दिखती है, पर मात्र संवेदनशीलता से बात नहीं बनती है. पाॅलिसी की दिशा भी सही होनी चाहिए. मात्र उत्पादन बढ़ाने से किसान का उद्धार नहीं होगा. साठ के दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश में खेत परती पड़े रहते थे.

सिंचाई रहट और ढेकली से होती थी. आज पूरे क्षेत्र में ट्यूबवेल का जाल बिछ गया है. बैल के स्थान पर ट्रैक्टर से खेती हो रही है. उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है, फिर भी किसान की हालत खस्ता है. किसान खुदकशी कर रहे हैं. जाहिर है कि केवल उत्पादन में वृद्धि होने से किसान का हित हासिल नहीं होनेवाला है.

बीते समय में जब देश में किसी फसल का उत्पादन ज्यादा हुआ, तो सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध लगा कर किसानों को झटका दिया. जैसे 2012 में देश में कपास का बंपर उत्पादन हुआ.

देश में कपास के दाम कम थे और अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंचे थे. सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिये. देश के किसानों को अपने उत्पाद को मजबूरन घरेलू बाजार में सस्ते दाम पर बेचने पड़े. इसके विपरीत जब देश में उत्पादन कम होता है, तो सरकार खाद्य पदार्थों का आयात कर लेती है. जैसे पिछले वर्ष देश में दाल का उत्पादन कम हुआ, तो सरकार ने दाल का आयात किया. ऊंचे घरेलू दाम से किसान को लाभ उठाने के अवसर से वंचित कर दिया गया. किसान मंझधार में है. उत्पादन कम होता है, तो आयात कर लिया जाता है और अधिक होता है, तो निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है.

सरकार की इस नीति का उद्देश्य शहरी उपभोक्ताओं को प्रसन्न रखना है. देश में 60 प्रतिशत जनता अनाज खरीद कर जीवन-यापन करती है और 40 प्रतिशत लोग कृषि से. सरकार 60 प्रतिशत वालों को प्रसन्न रखना चाहती है. यह पाॅलिसी आत्मघाती है. जैसा कि पिछले वर्ष दाल के बढ़े दामों को लेकर देखा गया.

किसान को दाल के उचित दाम न देने से उत्पादन कम हुआ, दाम बढ़े और उपभोक्ता परेशान हुए. अतः जरूरी है कि सरकार किसान को खाद्यान्न के सही दाम दिलाये और किसान तथा उपभोक्ता दोनों को राहत दे. 2014 में तूर दाल के दाम 100 रुपये प्रति किलो थे. यदि उसी वर्ष सरकार दाल के दाम बढ़ा कर 130 रुपये कर देती, तो किसान दाल का अधिक उत्पादन करने को प्रोत्साहित होते और देश में दाल की कमी नहीं होती.

सरकार को कृषि उत्पादों के न्यायपूर्ण दाम सुनिश्चित करने चाहिए. वर्तमान में न्यूनतम समर्थन मूल्य गेहूं, चावल और गन्ने जैसी चुनिंदा फसलों पर घोषित किये जाते हैं. इससे हानि यह है कि किसान द्वारा इन फसलों को अधिक उगाया जा रहा है. अतः सरकार का दायित्व बनता है कि दूसरी प्रमुख फसलों पर भी न्यूनतम मूल्य घोषित करके इनकी खरीद की व्यवस्था करे.

इस पृष्ठभूमि में सरकार के सामने तीन उद्देश्य हैं- किसान को उचित लाभ दिलाना, उपभोक्ता को सस्ता माल उपलब्ध कराना और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना. इन तीनों उद्देश्यों को हासिल करने के लिए जरूरी है कि कृषि उत्पादों के न्यायपूर्ण एवं उचित दाम स्थापित किये जायें. ऐसा करने से किसान को उचित दाम तथा उपभोक्ता को उचित माल मिलेगा, साथ ही देश की खाद्य सुरक्षा भी स्थापित होगी. इस नीति को ठीक किये बिना सभी कदम असफल होंगे.

आज अमेरिका में खेत मजदूर की दैनिक मजदूरी लगभग 6,000 रुपये है, जबकि भारत में 300 रुपये. फिर भी अमेरिका से सेब और दुग्ध पदार्थों का आयात हो रहा है. वास्तविकता यह है कि अमेरिकी सरकार द्वारा अपने किसानों को सस्ता उत्पादन करने के लिए विभिन्न प्रकार से सब्सिडी दी जा रही है. वहां सेब के दाम न्यून हैं. डब्ल्यूटीओ में इन घरेलू सब्सिडी पर प्रतिबंध नहीं है. केवल माल के निर्यात पर सब्सिडी देने पर प्रतिबंध है. निर्यात को सब्सिडी नहीं दी जा सकती है, परंतु घरेलू उत्पाद को सस्ता करने के लिए सब्सिडी दी जा सकती है.

सरकार को चाहिए कि विकसित देशों द्वारा दी जा रही बेहिसाब घरेलू सब्सिडी को हटाने की डब्ल्यूटीओ में मुहिम छेड़े. ऐसा करने से विकसित देशों के माल के दाम बाजार में बढ़ेंगे और हमारे किसानों को निर्यात के अवसर मिलेंगे.

दूसरा कदम देश की रिसर्च संस्थाओं को कारगर बनाने का है. आज अमेरिका का विश्व में दबदबा मुख्यतः नयी तकनीकों के आविष्कार पर टिका हुआ है. तुलना में अपने देश के कृषि अनुसंधानों की स्थिति लचर है.

देश के सभी विश्वविद्यालयों एवं रिसर्च संस्थाओं पर अच्छे रिजल्ट देने का दबाव बनाना चाहिए. फैकल्टी को पांच साल के ठेके पर नियुक्त करना चाहिए. कारगर रिसर्च न करने पर इन्हें बाहर कर देना चाहिए. तब ही नयी तकनीकों का आविष्कार होगा. इनसे किसानों की उत्पादन लागत कम होगी और उपभोक्ता को लाभ होगा.

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