पुस्तक को बनायें स्थायी मित्र
हम जैसे-जैसे आधुनिक होते जा रहे हैं, हमारा बौद्धिक ज्ञान संकुचित व सीमित होता जा रहा है. बाजार में स्मार्टफोन्स आ जाने के बाद छात्रों का भी ध्यान पुस्तकों से हटने लगा है. आज पुस्तकों को छात्र उतना महत्व नहीं देते, जितना स्मार्टफोन्स, कंप्यूटर आदि आधुनिक उपकरणों को देते हैं. ‘डिजिटलीकरण’ के युग में आज […]
हम जैसे-जैसे आधुनिक होते जा रहे हैं, हमारा बौद्धिक ज्ञान संकुचित व सीमित होता जा रहा है. बाजार में स्मार्टफोन्स आ जाने के बाद छात्रों का भी ध्यान पुस्तकों से हटने लगा है. आज पुस्तकों को छात्र उतना महत्व नहीं देते, जितना स्मार्टफोन्स, कंप्यूटर आदि आधुनिक उपकरणों को देते हैं. ‘डिजिटलीकरण’ के युग में आज जिस प्रकार से स्कूलों में इंटरनेट के माध्यम से छात्रों को शिक्षित किया जा रहा है, उससे उनको स्थायी ज्ञान के बजाय अस्थाई ज्ञान की प्राप्ति हो रही है.
उन्हें पुस्तकों की तरह शब्दों, वाक्यों तथा व्याकरण की जानकारी नहीं हो पा रही. ‘विजुअलाइजेशन’ की प्रक्रिया उन्हें पुस्तक की तरह विस्तार रूप में किसी विषय से संबंधित जानकारी मुहैया नहीं करा सकती. उन्हें इंटरनेट पर पुस्तकों की तरह सरल, सुबोध व विभिन्न भाषाओं में उनके आवश्यकतानुसार लेख या आलेख उपलब्ध नहीं हो पाते हैं.
दूसरी अोर पुस्तकों में ज्ञान का भंडार है. वह हमारी अक्षय निधि हैं. एक पाश्चात्य विद्वान ने कहा है कि- ‘‘किताबें मित्रों में सबसे शांत और स्थायी मित्र होती हैं. सलाहकारों में सबसे सुलभ और बुद्धिमान सलाहकार होती हैं और शिक्षक में सबसे धैर्यवान शिक्षक होती हैं.’’ इस हालत में सच कहें तो आज पुस्तकों की जिंदगी खतरे में है.
विज्ञान और तकनीक ने आज के छात्रों को पुस्तकों से अलग कर दिया है. जिस तेजी से आज छात्र पुस्तकों से नाता तोड़ते जा रहे हैं, वह उचित नहीं. हमें विद्यार्थियों को पुस्तकों से जोड़ना होगा, उनसे मित्रता करानी होगी. उन्हें मेलों की जगह पुस्तक मेलों तथा पुस्तकालयों में जाने के लिए प्रेरित करना होगा.
क्योंकि, पुस्तक से ही किसी भी छात्र के चरित्र का बेहतर निर्माण हो सकता है. पुस्तक से ही छात्रों में नैतिकता, बौद्धिकता, तार्किक क्षमता व वैयक्तिकता की स्थापना संभव है. आज मानव जाति ने जो कुछ भी पाया, जो कुछ सीखा वह तो पुस्तकों के जादू भरे पृष्ठों से ही. उन्हीं में हमारा ज्ञान सुरक्षित है.
– ओमप्रकाश प्रसाद, हुगली