नाजमा खान
टीवी पत्रकार
आध्यात्मिक हो या प्राकृतिक, ऋषिकेश में हर तरफ सुकून मिलता है. दुनियाभर से लोग यहां आते हैं. गाहे-बगाहे मैं भी वहां चली जाती हूं. ऋषिकेश में घंटों गंगा किनारे बैठना, एक-दूसरे से लड़ती, लेकिन फिर एक हो जाती लहरों को देखना बहुत अच्छा लगता है. शाम के वक्त गंगा आरती के दौरान हवा में घुलता हवन का धुआं और गंगा के शोर में मिलते आरती के शब्द खूबसूरत माहौल बनाते हैं. बहरहाल, वहां लोग जल्दी सोते हैं और जल्दी उठ जाते हैं, लेकिन गंगा से लगे कुछ मंदिरों में पूरी रात राम-नाम के भजन चलते रहते हैं.
एक जनवरी का दिन था. हाथ में चाय का कप लिये मैं गंगा घाट पर बैठी थी. खूबसूरत माहौल को एक बुजुर्ग ने कर्कश तरीके से झाड़ू लगा कर तबाह कर दिया. गुस्सा तो इतना आ रहा था कि क्या बताऊं. सोचा एक कोना साफ करके बैठेगा. मैं थोड़ा आगे सरक गयी, पर वह धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया. मुझे फिर सरकना पड़ा. मैं गुस्से में उठ कर सामने बनी रेलिंग पर बैठ गयी और उस बुजुर्ग को देखने लगी. लेकिन, उसे तो जैसे मेरे होने का अहसास ही ना था. लगा पड़ा था अपनी ही धुन में. बहुत करीने से झाड़ू लगा रहा था. सारा कूड़ा एक जगह जमा कर दिया.
बुजुर्ग की लगन को देख मेरी उत्सुकता किसी बच्चे की तरह बढ़ गयी. मैं जानना चाहती थी कि वह कूड़ा कहां जानेवाला है. क्या वह बाबा कूड़े को गंगा में ही बहा देनेवाला है या फिर वहीं छोड़ देनेवाला है? बाबा ने सारे कूड़े को कूड़ेदान में डाल दिया. फिर वह एक कनस्तर में कुछ रेत लाया. मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह कर क्या रहा है. कुछ झुंझलाहट सी हो रही थी कि आखिर मैं यहां अपना समय क्यों बरबाद कर रही हूं. किसी के कूड़े उठाने या ना उठाने से मुझे क्या फर्क पड़ता है, पर फिर भी मैं वहां से उठ नहीं पायी. बाबा ने रेत का कनस्तर एक गड्ढे में पलट दिया और मेरी तरफ देख कर हंसते हुए कहा- गुटखा खानेवालों के लिए इंतजाम कर रहा हूं. मैं बाबा से बात करने लगी और काफी देर तक बतियाती रही. मैंने पूछा, क्या आप ऐसा हमेशा करते हैं? उनका जवाब था- हां. तब मुझे समझ में आया कि गंगा सफाई का असली सिपाही यही है.
गंगा घाट पर हर दिन स्नान के लिए आनेवाले लोग काफी गंदगी फैला जाते हैं. कई बार तो लोग अपने पुराने कपड़े स्नान कर वहीं उतार कर चलते बनते हैं. शाम के वक्त गंगा आरती में आध्यात्मिक प्रवचन सुनने, गंगा सफाई का संकल्प लेनेवाले लोग घाटों पर खा-पीकर वहीं प्लास्टिक की बोतलें, पन्नियां छोड़ कर चले जाते हैं. उनके जाने के बाद हर सुबह वह बाबा इसी तरह साफ-सफाई करता है. उसे किसी से कोई मतलब नहीं, क्योंकि वह किसी के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए गंगा की सफाई करता है. कूड़ा फेंकनेवाले को बाबा डांटता नहीं है, बल्कि अपने चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ उस कूड़े को साफ कर देता है.
मेरे दिमाग में नमामि गंगे और तमाम एेसी योजनाएं घूमने लगीं, जिन पर करोड़ों खर्च किया जा चुका है और किया जा रहा है. बाबा की एकला चलो की जिद देख कर लगा कि काश इस बूढ़े शख्स के साथ उन तमाम लोगों का काफिला जुड़ जाये, जो सच में गंगा को निर्मल बनाना चाहते हैं, तो गंगा बहुत जल्द ही स्वच्छ हो जायेगी.