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पुरातन सोच पर नहीं फूलेंगे नवांकुर
राजीव रंजन झा संपादक, शेयर मंथन पिछले साल स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस स्टार्ट-अप इंडिया अभियान की घोषणा की थी, उसका शुभारंभ इस 16 जनवरी को कर दिया गया. प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर यह इच्छा प्रकट की कि भारत के युवा नौकरी खोजनेवाले के बजाय रोजगार पैदा करनेवाले बनें. उन्होंने कहा […]
राजीव रंजन झा
संपादक, शेयर मंथन
पिछले साल स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस स्टार्ट-अप इंडिया अभियान की घोषणा की थी, उसका शुभारंभ इस 16 जनवरी को कर दिया गया. प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर यह इच्छा प्रकट की कि भारत के युवा नौकरी खोजनेवाले के बजाय रोजगार पैदा करनेवाले बनें.
उन्होंने कहा कि यदि एक स्टार्ट-अप सिर्फ पांच लोगों को भी रोजगार दे, तो यह राष्ट्र की बड़ी सेवा होगी. लेकिन, एक बार फिर ऐसा लगता है कि स्टार्ट-अप यानी नवांकुर कंपनियों के परिवेश (इकोसिस्टम) को विकसित करने की दिशा में प्रधानमंत्री की शुभेच्छाओं पर सरकारी अमले की पुरातन सोच भारी पड़ी है.
प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि स्टार्ट-अप को पहले तीन साल तक लाभ पर आयकर के भुगतान से छूट दी जायेगी. लगता है कि सरकार के जिस किसी अधिकारी ने इस प्रावधान के बारे में सोचा होगा, उसे नवांकुर कंपनियों के कामकाज के बारे में बहुत सीमित जानकारी है. भला कितने स्टार्ट-अप उद्यम अपने शुरुआती तीन वर्षों में लाभ कमा पाते हैं? लाभ तो छोड़िए, वे इस चिंता मे रहते हैं कि आमदनी भी होगी या नहीं.
नवांकुर उद्यमों के प्रति अपने लगाव की वजह से पिछले साल प्रधानमंत्री ने अमेरिका की सिलिकन वैली की यात्रा की थी. सिलिकन वैली नवांकुर कंपनियों का स्वर्ग है, जहां उनके लिए एक भरा-पूरा विकसित परिवेश है.
यहां नवांकुर कंपनियों के भविष्य पर दांव लगाते हुए उन्हें आरंभिक पूंजी देनेवाले निवेशकों की पूरी शृंखला विकसित हो चुकी है. बिल्कुल आरंभिक स्तर पर बीज के रूप में छोटी राशि का सीड कैपिटल देनेवाले निवेशक हैं, तो उससे आगे की कड़ी में किसी उत्साही व्यक्ति के उद्यम में अपनी व्यक्तिगत पूंजी लगानेवाले एंजेल निवेशक भी हैं. उद्यम उससे आगे बढ़े तो कॉरपोरेट स्तर पर जोखिम पूंजी का निवेश करनेवाली कंपनियां वेंचर कैपिटल उपलब्ध कराती हैं, जिन्हें वेंचर कैपिटल फंड कहते हैं. उद्यम उससे भी आगे बढ़े, तो संस्थागत रूप से बड़े स्तर का निवेश करनेवाले प्राइवेट इक्विटी फर्म मौजूद रहते हैं.
इनमें से हर श्रेणी के निवेशक यह मान कर चलते हैं कि उनके 10 में से आठ-नौ निवेश असफल होंगे, मगर एक-दो निवेश ही इतनी सफलता हासिल कर लेंगे कि बाकी उद्यमों में लगी पूंजी भी निकल आयेगी. ऐसे एक-दो उद्यम में भी इस तरह का लाभ हासिल करने के लिए निवेशक कम-से-कम पांच-सात साल का धैर्य रख कर चलते हैं. ऐसे में पता नहीं किस सोच के तहत स्टार्ट-अप कंपनियों को शुरुआती तीन साल कर लाभ पर कर छूट देने की घोषणा की गयी है! यह ऐसी घोषणा है, जिससे शायद अपवाद रूप में ही किसी स्टार्ट-अप को फायदा मिल सकेगा. पर सरकार ने भली जान पड़नेवाली, वाहवाही जुटानेवाली एक घोषणा कर ली. हर्रे लगे ना फिटकरी, रंग चोखा ही चोखा!
बहरहाल, इस मौके पर की गयी कुछ अन्य घोषणाएं पहली नजर में उपयोगी जान पड़ती हैं. बताया गया है कि स्टार्ट-अप यानी नवांकुर उद्यमों के वित्तपोषण के लिए 10,000 करोड़ रुपये का एक स्टार्ट-अप फंड बनाया जायेगा.
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि सरकार स्टार्ट-अप पेटेंट आवेदनों की फास्ट-ट्रैकिंग पर काम कर रही है. स्टार्ट-अप कारोबारों के लिए पेटेंट शुल्क में 80 फीसदी तक छूट की घोषणा की गयी है. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि स्टार्ट-अप के लिए नौ श्रम और पर्यावरण कानूनों के वास्ते एक स्व-प्रमाणन आधारित अनुपालन व्यवस्था पेश की जायेगी. साथ ही इनके लिए एक सरल निकासी नीति पर काम करने की बात भी कही गयी है.
यह सच है कि नवांकुर कंपनियों के लिए सबसे बड़ा प्रश्न आरंभिक पूंजी का होता है. वहीं से उनका अस्तित्व आरंभ होता है और अक्सर वित्त की कमी से ही उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है. अगर 10,000 करोड़ रुपये का यह नया कोष बीज-पूंजी उपलब्ध कराने की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका को सार्थक ढंग से निभा सके, तो यह देश में ऐसे उद्यमों के लिए परिवेश विकसित करने में सबसे ज्यादा मददगार होगा. मगर ऐसे कोष को बना देना अलग बात है और सार्थक ढंग से चला पाना अलग बात. सिडबी पहले से ही एक वेंचर फंड चलाता रहा है.
कई राज्य सरकारों ने भी वेंचर कैपिटल मुहैया कराने वाली संस्थाएं बनायी हैं. केंद्र की ओर से भी पहले से कई घोषणाएं होती रही हैं. मगर इनमें से किसी के भी पास सफलता की एक भी कहानी शायद ही हो. इन सरकारी संस्थाओं से आरंभिक पूंजी हासिल करके सफलता की सीढ़ियां चढ़नेवाले किसी एक भी उद्यम का नाम ध्यान में नहीं आता. अगर नये कोष की भी गति वैसी ही होनी हो, तो उससे कोई उम्मीद नहीं रखी जा सकती. लेकिन, यह नया कोष एक नयी सोच के साथ काम करेगा और अलग तरह के परिणाम दे सकेगा, इसका भरोसा अभी कैसे किया जाये?
मगर इन सबसे परे, नवोन्मेष को समर्थन देने के लिए हमारी पूरी व्यवस्था में जो सहानुभूति वाली नजर होनी चाहिए, उसको लाये बिना नवांकुर उद्यमों के फलने-फूलनेवाला परिवेश कैसे बनेगा? प्रधानमंत्री ने विज्ञान भवन में अपने संबोधन में जुगाड़ का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि भारत में जुगाड़ जैसा नया प्रयोग दुनिया में कहीं नजर नहीं आयेगा.
लेकिन, क्या प्रधानमंत्री अवगत नहीं हैं कि जुगाड़ नाम से चलनेवाले तिपहिया वाहन को सरकारें मान्यता नहीं देती हैं और अदालतों ने उन्हें यातायात सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक मान कर सरकारों को इन पर सख्ती से रोक लगाने के लिए कह रखा है! हमारी व्यवस्था एक नये प्रयोग को खतरनाक मान कर उस पर रोक लगाना जानती है, उस प्रयोग को एक सुरक्षित और उपयोगी उत्पाद के रूप में बाजार तक पहुंचाने में मदद करना नहीं जानती.
कभी कोई खबर आती है कि हरियाणा के किसी गांव में दो युवकों ने चार फीट का उड़नेवाला विमान बनाया है, तो कभी कहीं और से ऐसी ही कोई दूसरी खबर मिलती है. मगर ऐसे प्रयोगों को आगे प्रोत्साहन मिलने के बदले सरकारी कानूनों के फंदे में ही बांध दिया जाता है. अगर कोई ड्रोन विकसित करे, तो तुरंत पुलिस सक्रिय हो जाती है कि सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो रहा है. क्या हम ऐसे केंद्र नहीं बना सकते हैं, जहां ऐसे कच्चे-अधपके प्रयोगों को आगे बढ़ाया जा सके और फिर उनसे बाजार में उतारे जा सकने लायक उत्पाद विकसित हो सकें?
जिस सिलिकन वैली को स्टार्ट-अप उद्यमों के लिए आदर्श माना जाता है, वहां आज की जाने कितनी ही विशालकाय कंपनियां कभी एक गैरेज में शुरू हुई थीं. भारत का सरकारी अमला तो शायद ऐसी किसी कंपनी को पहले यह नोटिस भेज दे कि आप एक आवासीय जगह में व्यवसाय करके कानून भंग कर रहे हैं!
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