अब तो जागो पाक

‘तुम्हारी तहजीब अपने खंजर से आप ही खुदकुशी करेगी, जो शाखे नाजुक पे आशियाना बनेगा नापायेदार होगा.’ काव्य-संकलन ‘बांग-ए-दरा’ में आनेवाला अल्लामा इकबाल का यह शेर संबोधित तो है पश्चिमी दुनिया और उसकी आधुनिकता को, लेकिन विडंबना देखिए कि सच हो रहा है पूरब के उस देश पाकिस्तान पर, जिसके औपचारिक प्रस्तावक भले इकबाल न […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 21, 2016 1:24 AM
‘तुम्हारी तहजीब अपने खंजर से आप ही खुदकुशी करेगी, जो शाखे नाजुक पे आशियाना बनेगा नापायेदार होगा.’ काव्य-संकलन ‘बांग-ए-दरा’ में आनेवाला अल्लामा इकबाल का यह शेर संबोधित तो है पश्चिमी दुनिया और उसकी आधुनिकता को, लेकिन विडंबना देखिए कि सच हो रहा है पूरब के उस देश पाकिस्तान पर, जिसके औपचारिक प्रस्तावक भले इकबाल न रहे हों, तो भी राजनीतिक सोच की बनावट उन्हें पाकिस्तान नामक विचार का हमदर्द बनाती थी. उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान के चारसद्दा शहर के बाचा खान यूनिवर्सिटी पर आतंकियों ने हमला कर छात्रों का कत्लेआम किया.
बाचा खान सांप्रदायिक एकता और वैश्विक भाईचारे की नजीर कहे जानेवाले और अहिंसाधर्मी होने के कारण भारतीय आजादी के आंदोलन में सीमांत गांधी के नाम से पुकारे जानेवाले खान अब्दुल गफ्फार खान के पुकार का नाम था. जाहिर है, अपनी सांकेतिकता में यह हमला एक विश्वविद्यालय यानी अज्ञान के अंधकार से प्रकाश की राह पर ले जानेवाले एक ठीहे को ढाहना तो माना ही जायेगा, शांति-अहिंसा, वैश्विक भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द्र के प्रतीक सीमांत गांधी के जीवन और संदेश पर भी चोट माना जायेगा.
इस हमले से पेशावर के आर्मी स्कूल पर करीब 14 महीने पहले हुए हमले की याद भी आयेगी, जब आतंकियों ने 140 लोगों की जान ले ली थी, जिनमें 130 तो सिर्फ स्कूली बच्चे थे. कहा जाता है कि हत्यारा कितना भी निष्ठुर हो, बच्चे को मारते वक्त उसके हाथ कांपेंगे और निशाना चूकेगा. लेकिन, पेशावर आर्मी स्कूल के बच्चों को मारते वक्त आतंकियों के हाथ नहीं कांपे, क्योंकि आतंकी उन बच्चों के भीतर अपने लिए एक खतरा देख रहे थे.
खतरा यह कि स्त्रियों, बच्चों और गैरमजहब को माननेवालों को मातहत बनाये रखनेवाले जिस तालिबानी राष्ट्र के निर्माण के लिए आतंकियों ने बंदूक उठाया है, कहीं ये बच्चे बड़े होकर वैसे मानव-द्रोही राष्ट्र के विचार को ही न नष्ट कर दें. आर्मी स्कूल वाली घटना के बाद पाकिस्तानी सेना आतंकियों पर हमलावर हुई थी. लगा था कि पाक सेना ‘गुड’ और ‘बैड’ तालिबान वाली अपनी कूटनीतिक समझ से उबर कर कदम उठा रही है और मान रही है कि आतंकी का कोई मजहब नहीं होता.
लेकिन, बाचा खान विवि पर हुए हमले ने फिर से जताया है कि न तो पाक सेना आतंकी अड्डों को समाप्त करने में सफल हो पायी है, न ही वहां की सरकार आतंकी विचारों को प्रश्रय देने वाली जमातों पर अंकुश रख पायी है. यह हमला तालिबानी तत्वों को आश्रय और बढ़ावा देनेवाली पाकिस्तान की राजनीति के लिए फिर से एक चेतावनी है.

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