हमारे समय से जिरह करती एक चिट्ठी
चंदन श्रीवास्तव एसोसिएट फेलो, सीएसडीएस ‘इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा-’ हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी स्कॉलर रोहित चक्रवर्ती वेमुला ने आत्महत्या करने से तुरंत पहले दुनिया के नाम लिखे अपने आखिरी पत्र में यह पंक्ति लिखी है. यह समझे बगैर कि रोहित को जीवन अभिशाप क्यों लगता […]
चंदन श्रीवास्तव
एसोसिएट फेलो, सीएसडीएस
‘इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा-’ हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी स्कॉलर रोहित चक्रवर्ती वेमुला ने आत्महत्या करने से तुरंत पहले दुनिया के नाम लिखे अपने आखिरी पत्र में यह पंक्ति लिखी है.
यह समझे बगैर कि रोहित को जीवन अभिशाप क्यों लगता रहा, उसकी आत्महत्या के अर्थ को खोलना मुश्किल है. रोहित होता तो शायद बताता कि फेसबुक के पन्ने पर चिपकी उसकी सैकड़ों तस्वीरों से झांकती चमकदार आंखों की उदास, वेधक और प्रश्नवाचक टकटकी का क्या अर्थ है. कैसे समझें कि आखिरी वक्त में रोहित ने अपने जीवन को अभिशाप की संज्ञा क्यों दी?
एक संकेत रोहित अपने आखिरी पत्र में छोड़ गया है.
उसने लिखा है, ‘एक आदमी की कीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नजदीकी संभावना तक सीमित कर दी गयी है. एक वोट तक. आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है.’ कहीं गहरे में 27 साल का यह नौजवान आदमी को अपने सांचे के भीतर कैद करनेवाले शासन के एक कठोर विचार-तंत्र से जूझ रहा था. एक ऐसा विचार-तंत्र, जो व्यक्ति को नाम और पहचान के लिए आतुर रहता है.
एक ऐसा शासन-तंत्र, जो इस नाम और पहचान आधार पर ही व्यक्ति के साथ अपने व्यवहार तय करता है. रोहित इस स्थिति का अतिक्रमण करना चाहता था, उसके भीतर ललक थी अपनी पहचान गढ़ने की, शासन के विचार-तंत्र के भीतर दिये गये नाम को ठुकरा कर अपने को नया नाम देने की. नयी पहचान और नया नाम देने की ललक ही तो थी, जो अपने आखिरी आत्म-व्यक्तव्य में उसने लिखा है- ‘मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान पर लिखनेवाला, कार्ल सागान की तरह. लेकिन, अंत में मैं सिर्फ यह पत्र लिख पा रहा हूं.’
ठीक चुना था कार्ल सागान को उसने अपने लिए आदर्श. अमेरिकी अंतरिक्ष विज्ञानी सागान उम्र भर मानते रहे कि परमाणु हथियारों के जखीरे पर बैठी यह दुनिया मानव-द्वेष से भरी है और आखिर को अपना अंत कर लेगी. सागान की खोज अंतरिक्ष से कम जुड़ी थी, मनुष्य-जीवन की संभावना को बचाये रखने से ज्यादा.
इसलिए, किसी अतींद्रीय ईश्वर को नहीं मानने के बावजूद वे इस यकीन पर कायम रहे कि हमारे ब्रह्मांड में धरती के बाहर भी जीवन है. सागान ने धरती पार के इस जीवन के लिए पूरी मनुष्यता की तरफ से अपने वैज्ञानिक कूटों से बना संदेशा छोड़ा है. यह संदेशा आज भी ब्रह्मांड में अपने सहृदय पाठक को खोजता भटक रहा है. रोहित वेमुला के आदर्श कार्ल सागान की तरह ही रोहित के पत्र को भी एक सहृदय पाठक की तलाश है.
यह पाठक केंद्रीय मंत्री बंडारु दत्तात्रेय नहीं हो सकते, क्योंकि वे अपने नाम और पहचान के एक ठोस घेरे में कैद हैं. दत्तात्रेय के पास वह सबकुछ है, जो इस देश की लोकतांत्रिक राजनीति के भीतर जनधर्मी बने रहने के लिए एक नेता के पास होना चाहिए. अथाह लोकप्रियता है उनके पास, पहले हैट्रिक और इस बार के लोकसभा चुनाव के बाद सिकंदराबाद से सांसदी का चौका लगाया है उन्होंने.
अपनी जातिगत पृष्ठभूमि के आधार पर दलित-बहुजन मतदाताओं के बीच उनकी पैठ देख कर ही भाजपा ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया. पहले वाजपेयी और फिर मोदी सरकार में वे मंत्री बने. फिर भी अपनी शेष पहचानों से अलग उन्होंने एक पार्टी से जुड़ी पहचानों को तरजीह दी.
उन्होंने वही किया जो भाजपा का एक सांसद अपनी पार्टी की छात्र-शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के स्थानीय प्रधान की शिकायत की सुनवाई के लिए करता. बाबा साहब आंबेडकर की राह की राजनीति करनेवाले रोहित और उसके साथियों की गतिविधियां उन्हें ‘राष्ट्रविरोधी’ लगीं और उन्होंने मंत्री की जगह पार्टी-धर्म का निर्वाह करते हुए चटपट केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी से शिकायत की.
ईरानी को लगता रहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन के भीतर केंद्रीय कानूनों के तहत हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, तो भी उन्होंने केंद्रीय कानूनों के ऊपर अपनी पार्टी के सांसद की शिकायत को तरजीह दी. बंधी हुई पहचान के कारण उन्होंने भी पार्टी-धर्म निभाया. तभी तो उनके मंत्रालय से हैदराबाद की सेंट्रल यूनिवर्सिटी को खबरदार करती चिट्ठी पहुंची. यूनिवर्सिटी के वीसी अपनी प्रशासक वाली पहचान से बंधे रहे. उन्होंने वही किया जो बड़े प्रशासकों के कहने पर एक मातहत प्रशासक को करना होता है.
बंधी हुई एक पहचान के भीतर तय की जानेवाली भूमिकाओं ने रोहित वेमुला की जान ली. रोहित की आखिरी चिट्ठी में एक पुकार है- पहचान के एक खास दायरे में कैद करनेवाली इस राजनीति से पार जाने की, मनुष्य के लिए संभावनाओं के द्वार खोलने की. क्या रोहित की चिट्ठी को उसका सहृदय पाठक मिल सकेगा?