विकास की उम्मीदें

दुनियाभर में स्टॉक बाजारों में निरंतर गिरावट और आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अनुकूल वैश्विक परिस्थितियों में भारत द्वारा आठ-नौ फीसदी के विकास दर हासिल कर सकने की उम्मीद जतायी है. दावोस में विश्व आर्थिक फोरम के सालाना आयोजन में अपने संबोधन में उन्होंने निर्यात घटने तथा मुद्रा और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 22, 2016 6:24 AM
दुनियाभर में स्टॉक बाजारों में निरंतर गिरावट और आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अनुकूल वैश्विक परिस्थितियों में भारत द्वारा आठ-नौ फीसदी के विकास दर हासिल कर सकने की उम्मीद जतायी है. दावोस में विश्व आर्थिक फोरम के सालाना आयोजन में अपने संबोधन में उन्होंने निर्यात घटने तथा मुद्रा और बाजार की चिंताओं को स्वीकार करते हुए रेखांकित किया है कि सरकार उतार-चढ़ाव की चुनौतियों का सामना करने के लिए जरूरी कोशिशें लगातार कर रही है.
खराब मॉनसून तथा अन्य घरेलू और बाहरी कारणों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा वृद्धि दर सात से साढ़े सात फीसदी के बीच है, इसलिए वित्त मंत्री की यह बात तर्कपूर्ण है कि सकारात्मक वैश्विक कारक इसमें एक-डेढ़ फीसदी का इजाफा कर सकते हैं. सरकार ने कर्ज के रूप में फंसे बैंकों के धन का बोझ कम करने, कर प्रणाली में सुधार और एफडीआइ को बढ़ावा देने जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं, पर आर्थिक नीतियों को औद्योगिक विकास के अनुकूल बनाने की कोशिशें तेज करना भी जरूरी है.
दावोस में ही रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने सलाह दी है कि आर्थिक मंदी से बचाव के लिए कुछ वर्ष पूर्व लायी गयी केंद्रीय बैंकों द्वारा मदद की नीति को वापस लिया जाना चाहिए, क्योंकि इनके कारण मौद्रिक और शेयर बाजार में उथल-पुथल मच रही है. जानकारों के अनुसार, बैंकों की नीतियों के अलावा चीन की अर्थव्यवस्था में जारी गिरावट और तेल की कीमतों में कमी भी मौजूदा चिंता के बड़े कारक हैं. लेकिन, भारत अपने आर्थिक विकास के लिए इन कारकों का लाभ उठा पाने की स्थिति में भी है. जेटली ने कहा भी है कि चीन की मंदी की स्थिति में भारत वैश्विक वृद्धि में योगदान की वह भूमिका निभा सकता है, जो अब तक चीन करता आया है.
भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर अभी दुनिया में सबसे अधिक है और वैश्विक चिंताओं के माहौल में अंतरराष्ट्रीय निवेश भारत का रुख कर सकता है. यह निवेशकों के लिए भी बेहतर विकल्प है. लेकिन, इस संदर्भ में सरकार को निरंतर तत्पर रहने की जरूरत है. जीएसटी और श्रम कानूनों में बदलाव की दिशा में प्रगति धीमी है.
वाणिज्यिक गतिविधियों के विस्तार के लिए सकारात्मक नीतिगत पहलों के द्वारा विकास को गति और अर्थव्यवस्था को मजबूती दी जा सकती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार, उद्योग जगत और निवेशकों की साझा कोशिशों से वर्तमान चुनौतियां हमारे लिए समुचित अवसर बन सकेंगी तथा उत्पादन में वृद्धि के साथ बड़ी संख्या में रोजगार सृजन भी हो सकेगा.

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