राहत और विकास का तकाजा
यूपीए सरकार के कार्यकाल में ही कच्चे तेल की कीमतों से नियंत्रण हटा लिया गया था. इससे विश्व बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते-घटते मूल्यों का प्रभाव आम उपभोक्ताओं पर भी पड़ना निश्चित हो गया. लेकिन, इसका लाभ दुर्भाग्य से आम उपभोेक्ताओं को नहीं मिला. उस समय पेट्रोल व डीजल के दाम क्रमश: 74 रुपये […]
यूपीए सरकार के कार्यकाल में ही कच्चे तेल की कीमतों से नियंत्रण हटा लिया गया था. इससे विश्व बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते-घटते मूल्यों का प्रभाव आम उपभोक्ताओं पर भी पड़ना निश्चित हो गया. लेकिन, इसका लाभ दुर्भाग्य से आम उपभोेक्ताओं को नहीं मिला.
उस समय पेट्रोल व डीजल के दाम क्रमश: 74 रुपये व 67 रुपये थे, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करीब 135 डॉलर प्रति बैरल थी. अब जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका मूल्य घट कर 30 से 35 बैरल हो जाने के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा जनता को इसका कोई लाभ नहीं दिया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरते मूल्य से केंद्र सरकार को लाभ हुआ, साथ ही अतिरिक्त शुल्क बढ़ा कर और लाभ कमाया. इससे जनता पर भारी बोझ पड़ रहा है.
सरकार दो तरह प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से दामों में कमी और तीव्र पारदर्शी विकास से जनता को राहत दे सकती थी, जो नहीं दे पा रही है. इसलिए जनहित में जल्द ही कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है.
– वेद, नरेला