सूबे में प्राथमिक शिक्षा का बुरा हाल

झारखंड में प्राथमिक शिक्षा का हाल खस्ता हो गया है. इस हालत के लिए सीधे तौर पर किसी को भी जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता. सरकार की उदासीनता, शिक्षकों की कमी आदि समस्याओं की वजह से देश के भविष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वचित हैं. सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर सरकारी विद्यालयों के बच्चों को हर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 28, 2016 1:35 AM
झारखंड में प्राथमिक शिक्षा का हाल खस्ता हो गया है. इस हालत के लिए सीधे तौर पर किसी को भी जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता. सरकार की उदासीनता, शिक्षकों की कमी आदि समस्याओं की वजह से देश के भविष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वचित हैं.
सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर सरकारी विद्यालयों के बच्चों को हर तरह की सुविधा मुहैया करती है. परंतु, आज भी बच्चे अच्छी शिक्षा से वंचित हैं. सरकारी विद्यालयों में मध्याह्न भोजन, स्कूल ड्रेस, जूता, स्काॅलरशिप, किताब आदि सरकार द्वारा बच्चों को मुफ्त मुहैया करायी जाती है.
सरकारी विद्यालयों के बच्चों के पिछड़ने का मुख्य कारण योग्य शिक्षकों की कमी भी है. वर्तमान में विद्यालय में जो भी शिक्षक हैं, उन्हें सरकार द्वारा गैर शैक्षणिक कार्यों जनगणना, वोटर लिस्ट तैयार करने से लेकर स्कूलों में चल रही सरकारी योजनाओं में लगा दिया जाता है. इससे शिक्षक पूरा समय बच्चों को पढ़ाने में नहीं दे पाते. सरकार द्वारा योग्य शिक्षकों की नियुक्ति का दावा किये जाने के बावजूद वास्तविकता कुछ और ही है.
स्कूलों की स्थिति यह है कि मध्य विद्यालय के बच्चे को देश की राजधानी, देश के वर्तमान राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्य के मुख्यमंत्री, राज्य की राजधानी जैसे मामूली सवालों का जवाब नहीं दे पाते. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि करोड़ों रुपये खर्च किये जाने के बावजूद बच्चे किस प्रकार की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. देश आज तेजी से विकसित हो रहा है. देश को डिजिटल बनाने के साथ साथ कौशल विकास पर जोर दिया जा रहा है. वर्तमान में प्राथमिक शिक्षा की दुर्दशा में आवश्यकता सुधार नहीं किया गया, तो यह विकास में बाधक साबित होगा.
आर्थिक तंगी के कारण अधिकतर लोग बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ाने में अक्षम हैं. सवाल यह है कि सरकार द्वारा प्राथमिक शिक्षा में इतना पैसा खर्च करने के बावजूद गुणवतापूर्ण शिक्षा प्रदान नहीं कर पा रही है, तो निर्धन व्यक्ति बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए क्या करें?
– प्रताप तिवारी, सारठ

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