लोकतंत्र, गणतंत्र बनाम धनतंत्र

देश में गणतंत्र स्थापित हुए 66 वर्ष हो गये, लेकिन धनतंत्र आज भी लोकतंत्र, गणतंत्र व जनतंत्र पर भारी है. हमारे संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर ने बड़ी आशा के साथ संविधान का निर्माण किया था. इस काम में कई महापुरुषों का भी योगदान रहा, लेकिन क्या वे आज देश में लोकतंत्र की स्थिति को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 30, 2016 6:30 AM
देश में गणतंत्र स्थापित हुए 66 वर्ष हो गये, लेकिन धनतंत्र आज भी लोकतंत्र, गणतंत्र व जनतंत्र पर भारी है. हमारे संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर ने बड़ी आशा के साथ संविधान का निर्माण किया था. इस काम में कई महापुरुषों का भी योगदान रहा, लेकिन क्या वे आज देश में लोकतंत्र की स्थिति को देख कर हर्षित होते?
आज देश में हर जगह धनतंत्र का राज है. कहीं न कहीं इसके लिए हम आम नागरिक खुद जिम्मेवार हैं. हम हर साल गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस मनाते तो हैं, पर इसका महत्व नहीं समझते और आंखें बंद कर अंधे हो जाते हैं.
वर्तमान में कुछ सत्ता के लोभी लोकतंत्र, गणतंत्र व जनतंत्र को अपनी जेब में रखते हैं और धनतंत्र के जरिये चलते हैं. इससे होता यह है कि एक आम इनसान इस व्यवस्था में खुद को बेबस महसूस करता है. आम पर खास हावी होता है. अगर यह व्यवस्था यूं ही चलती रही, तो वह दिन दूर नहीं, जब हम और हमारा संविधान-कानून धनतंत्र का गुलाम बन जायेगा.
– सुमंत कुमार चौधरी, ई-मेल से

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