सामाजिक ताना-बाना बुनते विज्ञापन

फिल्म और टेलीविजन हमारे मनोरंजन के सबसे बड़े स्रोत हैं. इनकी विषयवस्तु समाज से प्रेरित होती हैं, तो कभी समाज को प्रेरित भी करतीं हैं. यह प्रेरणा कभी सकारात्मक होती है, तो कई बार नकारात्मक भी. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में फिल्मों और टीवी की सामग्रियों में नकारात्मकता ज्यादा झलकती है. फिल्म और टीवी की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 30, 2016 6:30 AM
फिल्म और टेलीविजन हमारे मनोरंजन के सबसे बड़े स्रोत हैं. इनकी विषयवस्तु समाज से प्रेरित होती हैं, तो कभी समाज को प्रेरित भी करतीं हैं. यह प्रेरणा कभी सकारात्मक होती है, तो कई बार नकारात्मक भी. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में फिल्मों और टीवी की सामग्रियों में नकारात्मकता ज्यादा झलकती है. फिल्म और टीवी की विषयवस्तुओं से अमूमन तात्पर्य फिल्मों, टीवी कार्यक्रमों की कहानी और नाटकीयता से ही होता है, लेकिन इस मामले में हम विज्ञापनों को भूल जाते हैं.
किसी खास उत्पाद की ओर हमें आकर्षित करने के प्रयास से तैयार 20-30 सेकेंड के विज्ञापन भी कभी हमारे, आपके मन पर ऐसा प्रभाव डाल जाते हैं, जो तीन घंटे की फिल्म भी नहीं डाल पाती. कभी चाय बनानेवाली एक प्रतिष्ठित कंपनी अपने विज्ञापन की टैग लाइन ‘जागो रे’ के जरिये हमें वोट का महत्व और महिलाओं को सम्मान देने की बात सिखाती है, तो कभी सीलिंग फैन के विज्ञापन की टैग लाइन ‘हवा बदलेगी’, हमें माता-पिता को सम्मान देने का पाठ पढ़ाती है.
इसी क्रम में एक मोबाइल टेलीकॉम सेवा प्रदाता कंपनी के विज्ञापन हममें नयी चेतना जगा रहे हैं. कभी जातिगत भेदभाव दूर करना, तो कभी कागज का इस्तेमाल कम कर पेड़ों की कटाई रोकना. इसी क्रम में याद आती है एक ऐसे विज्ञापन की, जो आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में व्यस्त बच्चों को यह एहसास दिलाता है कि कभी मां का भी हाल-चाल पूछ लिया जाये. दरअसल इस विज्ञापन में एक मां अपने एग्जिक्यूटिव बेटे से फोन न करने की शिकायत करती है. गलती से मां-बेटे के फोन की अदला-बदली हो जाती है.
तब बेटे को यह एहसास होता है कि उसके फोन पर इतने कॉल्स आते हैं, पर मां के फोन पर एक भी नहीं. इससे मां कितना अकेला महसूस करती होगी! वह अपनी मां को फोन कर कहता है कि अब वह उन्हें रोज फोन करेगा! ऐसे मर्मस्पर्शी विज्ञापन पहले भी होते थे, आज भी हैं और आशा है आगे भी नजर आयेंगे.
– पायल बजाज, मधुपुर

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