बदले कार्य-संस्कृति

देश के सरकारी महकमों की कार्य-संस्कृति से हम सभी परिचित हैं. ज्यादातर आम नागरिक छोटी-मोटी कागजी कार्रवाईयों के लिए दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं. ऐसे में कभी यूं हो जाये कि संबंधित विभाग के कर्मचारी खुद ही आपके घर पर आयें और आपके दस्तावेज पूरे कर दें, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 30, 2016 6:31 AM
देश के सरकारी महकमों की कार्य-संस्कृति से हम सभी परिचित हैं. ज्यादातर आम नागरिक छोटी-मोटी कागजी कार्रवाईयों के लिए दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं. ऐसे में कभी यूं हो जाये कि संबंधित विभाग के कर्मचारी खुद ही आपके घर पर आयें और आपके दस्तावेज पूरे कर दें, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा.
लेकिन ऐसा हुआ. केरल के शिवराम अपने बूढ़े माता-पिता का आधार कार्ड बनवाने के लिए परेशान थे, पर शारीरिक मजबूरी के कारण उन्हें आधार केंद्र तक ले जाना मुश्किल था. थक-हार कर पिछले हफ्ते गुरुवार को शिवराम ने अपनी समस्या के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखा. रविवार को आधार केंद्र के कर्मचारियों ने उनके घर जाकर दोनों बुजुर्गों के कार्ड बनाने की प्रक्रिया पूरी कर दी.
प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार, पिछले साल पीएमओ में नागरिकों की ओर से आठ लाख शिकायतें आयी थीं, जिनमें से 6.8 लाख का निपटारा कर दिया गया है. निश्चित रूप से यह रुझान केंद्र सरकार, विशेष रूप से प्रधानमंत्री कार्यालय, के प्रति भरोसे का सूचक है.
प्रधानमंत्री मोदी अपनी पहल ‘प्रगति’ की मासिक बैठकों में नागरिकों की शिकायतों को प्राथमिकता देने पर जोर देते रहे हैं. सरकारी योजनाओं की पहुंच लोगों तक सुनिश्चित करने तथा समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए केंद्र सरकार की कोशिशें सराहनीय हैं और राज्य सरकारों को भी इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. लेकिन, यहां हमें इस तथ्य को भी रेखांकित करना चाहिए कि आखिरकार सरकार अपने स्थानीय कार्यालयों और उनमें कार्यरत कर्मचारियों के माध्यम से ही सेवाओं और कार्यक्रमों को नागरिकों तक पहुंचाती है.
रसोई गैस कनेक्शन लेने से लेकर कोई लाइसेंस या प्रमाणपत्र बनवाने, जमीन के दस्तावेज निकालने जैसे कामों के लिए लोगों को भागदौड़ करनी पड़ती है. इस व्यवस्था में लचरता के कारण ही निचले स्तर पर व्यापक भ्रष्टाचार और धांधली कायम है. शीर्ष से हस्तक्षेप के कारण कुछ शिकायतों के दूर हो जाने से समस्या का समुचित समाधान संभव नहीं है.
डिजिटल तकनीक से सरकार और शासन तक लोगों की पहुंच में सुविधा जरूर हुई है, पर बड़ी आबादी अब भी तकनीक के इस्तेमाल से दूर है. नागरिकों को अपनी समस्याएं उच्च स्तरों तक ले जाने में हिचक भी होती है. इसलिए सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों में जन सेवा का बोध पैदा करना जरूरी है. गरीब नागरिकों के प्रति असंवेदनशील रवैये के लिए दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान भी किया जाना चाहिए. पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के बिना कार्यकुशल और सक्षम शासन संभव नहीं है.

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