पारा शिक्षकों के मानदेय पर जिच
पारा शिक्षकों का मानदेय बढ़ाने का मामला सचमुच पेचीदा है. इसे और पेचीदा बना रहा है, झारखंड में इस संबंध में स्पष्ट नीति का अभाव. ऐसा लगता है कि सरकार मानदेय वृद्धि को लेकर गंभीर नहीं है, तभी तो जिन पारा शिक्षकों के जिम्मे शिक्षा का अधिकार लागू कराने की महती जिम्मेदारी है, वे लगातार […]
पारा शिक्षकों का मानदेय बढ़ाने का मामला सचमुच पेचीदा है. इसे और पेचीदा बना रहा है, झारखंड में इस संबंध में स्पष्ट नीति का अभाव. ऐसा लगता है कि सरकार मानदेय वृद्धि को लेकर गंभीर नहीं है, तभी तो जिन पारा शिक्षकों के जिम्मे शिक्षा का अधिकार लागू कराने की महती जिम्मेदारी है, वे लगातार आंदोलनरत हैं और मानदेय वृद्धि की फाइल दफ्तरों के चक्कर काट रही है.
हालत यह है कि शिक्षा मंत्री को भी फाइल मूवमेंट के संबंध में अद्यतन जानकारी नहीं होती है. वह नौकरशाही पर बरस पड़ती हैं, जबकि फाइल कहीं और थी. दिलचस्प यह कि इस पूरे मामले पर सरकार चुप रहती है. इस मसले पर विभागीय मंत्री व सरकार के बीच एक खाई है. एक तरफ विभागीय मंत्री मानदेय बढ़ाने की घोषणा करती हैं, तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री कार्यालय फाइल में त्रुटि बता कर योजना विकास विभाग को इसे लौटा देता है. राज्य गठन के बाद 500 रुपये के मानदेय पर नियुक्त पारा शिक्षकों का मानदेय समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा है.
लेकिन इस बार जिस कदर फाइलों की घुड़दौड़ जारी है, वैसी शायद कभी नहीं हुई. शिक्षा मंत्री ने गत 21 सितंबर को पारा शिक्षकों का मानदेय पांच हजार रुपये प्रतिमाह बढ़ाने की घोषणा कर दी. इससे 480 करोड़ रुपये का आर्थिक बोझ बढ़ेगा. सवाल उठता है कि इतनी रकम की व्यवस्था कैसे होगी? क्या केंद्र से मदद मिलेगी? प्रदेश सरकार को पहले इस बारे में अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए. आखिर मंत्री राज्य की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखे बगैर ऐसी घोषणा कैसे कर सकती हैं, जिन्हें पूरा कर पाना राज्य सरकार के वश में नहीं है?
अगर ऐसा करने के पीछे राजनीतिक मंशा छिपी है, तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता है. कैबिनेट ने इस प्रस्ताव पर अब जाकर सैद्धांतिक सहमति जतायी है. मामले को झारखंड शिक्षा परियोजना की कार्यकारिणी परिषद में रखने की बात कही गयी है. वृद्धि की मात्र पर फैसला यहीं होना है. इधर, पारा शिक्षकों का आंदोलन चरम पर है. पठन-पाठन पर असर पड़ रहा है. बच्चों का भविष्य दावं पर है. दरअसल, मानदेय वृद्धि से किसी को इनकार नहीं है. सही समय पर फैसला लेकर आंदोलन की नौबत से बचा जा सकता था. अब देखना है कि सरकार कितनी जल्दी फैसला लेती है.