सरकारी रेवड़ी नहीं अब तो झाड़ू चाहिए

।। दीपक कुमार मिश्र ।। (प्रभात खबर, भागलपुर) अपने देश में राजे-रजवाड़ों की परंपरा रही है. राजा, महाराजा और बादशाह जब खुश होते थे, तो दास-दासियों से लेकर अपने रियाया तक को सौगात दिया करते थे. अच्छी खबर मिलने पर वे अपने गले का हार या अशर्फियां इनाम में या कहें बख्शीश में दिया करते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 16, 2013 3:32 AM

।। दीपक कुमार मिश्र ।।

(प्रभात खबर, भागलपुर)

अपने देश में राजे-रजवाड़ों की परंपरा रही है. राजा, महाराजा और बादशाह जब खुश होते थे, तो दास-दासियों से लेकर अपने रियाया तक को सौगात दिया करते थे. अच्छी खबर मिलने पर वे अपने गले का हार या अशर्फियां इनाम में या कहें बख्शीश में दिया करते थे. अब देश में राजे-रजवाड़े तो नहीं रहे, लेकिन आधुनिक युग के राजे- रजवाड़े (नेताजी) अपनी रियाया को इनाम, बख्शीश, खैरात वगैरह देने की परंपरा भूले नहीं हैं.

चाहे लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का. चुनाव के पहले अपने घोषणा पत्र, लोक-लुभावन नारों व घोषणाओं के जरिए जनता जनार्दन को अपनी ओर खींचने का प्रयास होता है. लेकिन इस बार चुनाव के समय की गयी लोक-लुभावन घोषणाओं पर लोग नहीं गये. खासकर युवा वर्ग इस बात पर यकीन करने लगा है कि लाख छुपाओ छुप न सकेगा यह असली-नकली चेहरा. अब लोग रेवड़ियों पर नहीं, झाड़ पर यकीन करने लगे हैं. वही झाड़ जो घर के किसी कोने में उपेक्षित पड़ी रहती है. वैसे तो झाड़ू पंजे की पकड़ में होती है, लेकिन इस बार झाड़ू ने पंजे को पकड़ कर मरोड़ दिया. टूटा हुआ पंजा तो लटका ही है, कमल भी झाड़ू की चोट से छितराया हुआ लग रहा है.

दरअसल, आज की नयी पौध सड़ी-गली व्यवस्था से तंग आ चुकी है. उसे उस व्यवस्था पर भरोसा नहीं रह गया है जो ईमानदार होने का नाटक करती है, लेकिन ईमानदार होती नहीं है. मैं मानता हूं कि आप की जो रणनीति रही वह दिल्ली, मुंबई, बेंगुलरु जैसे शहरों में तो हिट रहेगी, लेकिन अभी इसके भागलपुर के झुरकुसिया गांव या जमुई के रोपावेल या फिर गोड्डा के मोतिया डुमरिया में हिट होने में समय लगेगा. लेकिन धीरे-धीरे ही सही, यह फामरूला यहां भी हिट होगा ही. आज की नयी पौध उस परंपरा या सोच से अपने को जोड़ कर नहीं रख सकती जो लोगों को नकारा बनाती हो. नयी पीढ़ी के अपने अनंत सपने हैं और वह उन्हें अपने भरोसे पूरा करना चाहती है. उसे लगता है कि मौजूदा सड़ी-गली व्यवस्था में उसके सपनों को पर नहीं लग सकते.

नयी पीढ़ी भ्रष्टाचार की गंदगी को झाड़ू मार कर साफ कर देना चाहती है. वह नहीं चाहती है कि हम कटोरा लेकर दूसरे के पास जाएं और उनसे मिली भीख के जरिए अपने को चमकाएं. उसे अपने बाजुओं पर भरोसा है.वह ईमानदारी के साथ बदल रही दुनिया के साथ कदमताल करना चाहती है. राजनेताओं को भी अपनी जीत के गणित का फामरूला अब बदलना होगा. लोग अब इनाम, उधार और पैंचा वाले पुराने फामरूले से उब चुके हैं. वह समझ गया है कि सरकारी मालपुआ के चक्कर में आलू-प्याज पर भी आफत हो जायेगी. अब लोक-लुभावन नारों का नहीं, बल्कि झाड़ू का जमाना है जो सड़ी -गली व्यवस्था को साफ कर दे और सामने धवल चादर बिछा दे, जिस पर अपने सपनों का इंद्रधनुष लोग बना सकें.

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