जीएसटी रोकना कांग्रेस को पड़ा भारी
प्रधानमंत्री मोदी ने जनता के मिजाज को अच्छी तरह से भांप लिया है. साथ ही, प्रधानमंत्री की पूरी विदेश नीति के लिए प्रशंसा का भाव हैः उनके काम से 50 फीसदी लोग सहमत हैं, जबकि असहमतों की संख्या मात्र 35 फीसदी है. राष्ट्रीय मिजाज के बारे में हाल में जारी एबीपी न्यूज-निल्सन सर्वेक्षण के नतीजों […]
प्रधानमंत्री मोदी ने जनता के मिजाज को अच्छी तरह से भांप लिया है. साथ ही, प्रधानमंत्री की पूरी विदेश नीति के लिए प्रशंसा का भाव हैः उनके काम से 50 फीसदी लोग सहमत हैं, जबकि असहमतों की संख्या मात्र 35 फीसदी है.
राष्ट्रीय मिजाज के बारे में हाल में जारी एबीपी न्यूज-निल्सन सर्वेक्षण के नतीजों को देख कर कांग्रेस आलाकमान के बैठकखाने में छायी चुप्पी और अचरज को सुना जा सकता है. आंकड़े बता रहे हैं- भारतीयों का मानना है कि आजादी के बाद से नरेंद्र मोदी देश के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री हैं. इनके बाद इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी का नाम आता है. इनके समर्थन का अनुपात क्रमशः 32, 23 और 21 फीसदी है. अगर आज आम चुनाव कराये जायें, तो 18 महीने से सत्तारूढ़ एनडीए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा में 301 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर सकता है.
अपने सांसदों की आंतरिक चर्चा में कांग्रेस नेतृत्व ने संसद में हमला-बाधा-भागने की रणनीति को सही ठहराया है और यह दावा किया है कि इन अवरोधों से बिना किसी नुकसान के राजनीतिक लाभ मिल रहा है. इसके साथ यह भी कहा गया है कि पिछले साल सबसे अधिक नुकसान खुद प्रधानमंत्री की व्यक्ति छवि का हुआ है. लेकिन यह सर्वेक्षण ठीक इसके विपरीत स्थिति को इंगित कर रहा है.
नरेंद्र मोदी को 58 फीसदी का स्पष्ट बहुमत सर्वाधिक लोकप्रिय नेता मानता है. इसके बाद पंक्ति में राहुल गांधी हैं, लेकिन इन दोनों के बीच भारी अंतर है. राहुल गांधी को सिर्फ 11 फीसदी का ही समर्थन प्राप्त है. यह भी महत्वपूर्ण है कि भाजपा के वोट कम होने के बजाय बढ़ गये हैं, और कांग्रेस का समर्थन बहुत घट गया है. वर्ष 2014 के आमचुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक रूप से सबसे कम 19.52 फीसदी वोट मिले थे, जबकि आज उसे मात्र 14 फीसदी ही मिल सकेंगे. राहुल गांधी की हठधर्मिता की यह कीमत कांग्रेस चुका रही है.
ऐसा क्यों हुआ है? राज्यसभा में कांग्रेस के अवरोध और जीएसटी विधेयक को उसके द्वारा लगातार रोके जाने को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया पर नजर डालें. सर्वेक्षण में शामिल 44 फीसदी लोगों का मानना है कि विपक्षी पार्टियां (मुख्य रूप से कांग्रेस) सरकार को जीएसटी पारित करने से रोक रही हैं. सिर्फ 30 फीसदी लोग कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं. सरकार के आर्थिक कार्यक्रम को भी सराहा गया है और 48 फीसदी लोग कह रहे हैं कि अर्थव्यवस्था बेहतर हुई है. अगर ये आंकड़े नहीं भी होते, तब भी इस स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था. मतदाता हमेशा उस राजनीतिक दल को नकार देंगे जो आर्थिक वृद्धि में बाधा डालता है. वर्ष 2014 में अपनी हार का बदला कांग्रेस मतदाताओं से ले रही है. यह बात मतदाता को क्यों भूलना चाहिए या इसे क्यों माफ करना चाहिए?
प्रधानमंत्री का यह समर्थन इस कारण और अधिक महत्वपूर्ण है. अगर आप इसमें इस तथ्य को जोड़ लें कि मतदाताओं के कुछ हिस्से अभी भी उनके विरोध में हैं. बहरहाल, जो तथ्य निर्विवाद है, वह यह है कि एक स्पष्ट बहुमत इस बात से सहमत है कि प्रधानमंत्री विशिष्ट हैं, उनकी सरकार गंभीर है और अर्थव्यवस्था सही दिशा में अग्रसर है. मौजूदा माहौल में दो तत्व खास तौर पर दिलचस्प हैं. एक, वाम मोर्चे का धीमा, पर निश्चित पुनरुभार. वर्ष 2014 की बरबादी के बाद अभी इसे 20 सीटें मिल सकती हैं. बंगाल और त्रिपुरा में उसका खाता चार से बढ़ कर नौ हो सकता है. चूंकि त्रिपुरा में उसकी पराजय नहीं हुई थी, तो यह बढ़त बंगाल में होगी. इससे बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की आसान जीत की आम संभावना पर प्रश्नचिह्न लगता है.
भारत के पूर्वी क्षेत्र में एक और रूझान को रेखांकित करें. हालांकि, एनडीए को 2014 की संख्या से 15 सीटें कम मिल रही हैं, फिर भी उसे बिहार, बंगाल, ओड़िशा और उत्तर-पूर्व से 31 फीसदी मतों के साथ 42 सीटें मिल सकती हैं. मतलब साफ है, जब प्रधानमंत्री केंद्र में अपनी सरकार के लिए वोट मांगते हैं, तो उसमें बड़ा उछाल आता है.
दूसरा, प्रधानमंत्री की पाकिस्तान नीति और उसके साथ संवाद कायम करने के उनके प्रयासों के पक्ष में बड़ा समर्थन है. इस प्रक्रिया में पठानकोट के धक्के के बावजूद लोगों की यह राय बरकरार है. उपमहाद्वीप में सामान्य स्थिति बहाल करने की लोगों की चाहत है, लेकिन यह सुरक्षा की कीमत पर नहीं होना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी ने जनता के मिजाज को अच्छी तरह से भांप लिया है. साथ ही, प्रधानमंत्री की पूरी विदेश नीति के लिए प्रशंसा का भाव हैः उनके काम से 50 फीसदी लोग सहमत हैं, जबकि असहमतों की संख्या मात्र 35 फीसदी है.
क्या यह सर्वेक्षण संसद के बजट सत्र में कांग्रेस को अपना रवैया बदलने के लिए तैयार कर सकेगा? इस सवाल का जवाब देने की जिम्मेवारी कांग्रेस नेतृत्व की है. लेकिन, चेतावनी को सुनने के लिए आपको रेत से अपना सिर तो बाहर निकालना ही होगा.
एमजे अकबर
राज्यसभा सांसद, भाजपा
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