कूड़े के ढेर में भविष्य तलाशते बच्चे

हर व्यक्ति अपने शहर को साफ रखना चाहता है, मगर जहां इतने सारे लोग होंगे तो गंदगी होगी ही और कूड़ा भी ज्यादा होगा. इन कूड़ों का हटाव, उठाव और निबटान एक अनुभवी एजेंसी के हाथों में है. फिर भी अपेक्षित सफाई नहीं दिखती. उम्मीद है एक दिन स्थिति बदली नजर आयेगी. शहर के कूड़े […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2013 4:51 AM

हर व्यक्ति अपने शहर को साफ रखना चाहता है, मगर जहां इतने सारे लोग होंगे तो गंदगी होगी ही और कूड़ा भी ज्यादा होगा. इन कूड़ों का हटाव, उठाव और निबटान एक अनुभवी एजेंसी के हाथों में है. फिर भी अपेक्षित सफाई नहीं दिखती. उम्मीद है एक दिन स्थिति बदली नजर आयेगी. शहर के कूड़े को रखने के लिए एक अस्थाई ‘यार्ड’ ठीक राजभवन के पास है. कहते हैं यह नागाबाबा खटाल है, मगर खटाल जैसा कुछ नहीं. असल में यह राजभवन की शोभा है.

इस ‘यार्ड’ में रखे कूड़े पर दिन भर मक्खियां भिनभिनाती हैं, कुत्ते अपने अंदाज में अठखेलियां करते नजर आते हैं. या कुछ मासूमों और महिलाओं की टोलियां दिखेंगी जो कूड़े के ढेर पर जान जोखिम में डाल कर कुछ चुनते दिखते हैं. शहर की गंदगी में ऐसा क्या छिपा हो सकता है? शायद ये बच्चे अपनी खुशियों की सौगात ढूंढ़ रहे हों या जवानी के सपने या फिर निश्चित ही भूख का समाधान तलाश रहे होंगे. पढ़े-लिखे लोगों को तरक्की का मतलब समझ में आता होगा, मगर इन खोजियों के लिए कूड़े का एक ‘डम्पर’ ही तरक्की का पैमाना है.

अपने यहां बच्चों और महिलाओं के उत्थान और कल्याण के लिए बहुत सी सरकारी और गैरसरकारी संस्थाएं काम करतीं है. हमारी बदनसीबी यह कि बाल सुधार गृह ‘हत्यारों की ऐशगाह’ है और मुफलिसी कूड़े के ढेर पर अपने अरमानों को पंख लगा रही है. शहरवासियों के पास फेंकने के लिए बहुत कुछ है, मगर गरीबी उसमें भी जिंदगी की जमा पूंजी तलाश ही लेती है. अगर हम दे सकें तो उनकी मुस्कराहटें उनको तोहफे में दे दें. बाल कल्याण के लिए नियुक्त पदाधिकारी किसी महंगे होटल या ब्यूटी पार्लर के आस-पास दिख जायें, तो उन्हें ऐसे नि:सहाय बच्चों का ठिकाना जरूर बता दें.
एमके मिश्र, रांची

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