औरतों के जीवन की यह कैसी रिंगटोन!

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार पिछले दिनों अपने मित्र की बेटी की शादी में जाना हुआ था. शाम उतरते ही धुंधलका नीचे आ गया था. कड़ाके की ठंड थी. आजकल ज्यादातर शादियां खुले में रखी जाती है. बच्चे ही इसकी जिद करते हैं. यह शादी भी एक फार्म हाउस में थी. हालांकि सिर पर टेंट की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 9, 2016 12:14 AM

क्षमा शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार

पिछले दिनों अपने मित्र की बेटी की शादी में जाना हुआ था. शाम उतरते ही धुंधलका नीचे आ गया था. कड़ाके की ठंड थी. आजकल ज्यादातर शादियां खुले में रखी जाती है. बच्चे ही इसकी जिद करते हैं. यह शादी भी एक फार्म हाउस में थी. हालांकि सिर पर टेंट की छांव थी.

जगह-जगह अलाव भी जले थे. बहुत से लोग खड़े होकर ताप रहे थे, फिर भी ठंड से निजात नहीं थी, क्योंकि आसपास खुला मैदान था. ठंडी हवा के थपेड़े झकझोरते हुए निकल रहे थे.

लग रहा था कि जल्दी से बारात का आगमन हो और यहां से चलें. तरह-तरह के स्नैक्स, पेय, चाट-पकौड़ी, दक्षिण-उत्तर भारतीय, पंजाबी खाने के बीसियों प्रकार, इतने कि आदमी एक-एक चम्मच चखना भी चाहे, तो भी न चख सके. पहले की शादियों में पूरी, सब्जी, लड्डू, दही से काम चल जाता था. अब तो खाने की मात्रा देख कर सोचना पड़ता है कि मेहमानों को इतने व्यंजन चाहिए क्यों, जो खाने से ज्यादा बर्बाद हों. एक अनुमान के मुताबिक हर साल शाही शादियों में इतना खाना खराब होता है, जिससे लाखों लोगों का पेट भरा जा सकता है.

खैर हम लोग खड़े होकर आने-जाने वालों को देख रहे थे. पुरुषों को ज्यादा ठंड लग रही थी, इसलिए ज्यादातर ने सूट पहन रखे थे. अंदर से स्वेटर भी झांक रहा था. लेकिन, साथ चल रही महिलाओं को देख कर लग रहा था कि जैसे यह कोई कड़कड़ाती ठंड की रात नहीं, उमस भरी गरमी की एक शाम है.

ज्यादातर के शरीर पर ऊनी कपड़े का कोई कतरा तक दिखाई नहीं दे रहा था. आखिर पुरुषों और महिलाओं की प्रजातियों में इतना फर्क क्यों? क्या सरदी भी नारीवादी हो गयी थी, कि पुरुषों को सता रही थी और महिलाओं से बच कर निकल रही थी.

एक से एक सजी-धजी महिलाओं में से बहुतों ने डीप नेक और बैकलैस ब्लाउज पहने थे. उनकी डिजाइनर साडियां भी पारदर्शी थीं. सरदी से बेपरवाह वे हाय-हलो करती, एक-दूसरे के कपड़ों की तारीफ कर रही थीं. मगर उनकी आंखों से लग रहा था कि ऐसी तारीफ का कोई अर्थ नहीं.

इन दिनों टीवी सीरियल्स में जिस तरह की महिला पात्र दिखाई देती हैं, जो अकसर घर में भी जेवर, कपड़ों और मेकअप से लदी रहती हैं और एक-दूसरे की तरफ दांत पीसती हुई दौड़ती हैं, शादी में आयी बहुत सी महिलाएं अपने कपड़ों, गहनों और ब्यूटी पार्लर की लिपाई-पुताई के कारण उन्हीं पात्रों जैसी ही दिख रही थीं.

शादी में जानेवाली ये महिलाएं डाक्टरों की सलाह क्यों नहीं सुनतीं, जो कहते हैं कि हड्डियों, पेट, कान-नाक, गला, यहां तक कि त्वचा को भी ठंड से बचा कर रखना चाहिए? आजकल सौंदर्य का सारा जोर आपकी त्वचा पर ही है, जिसे कांतिमय बनाने-दिखाने के लिए तमाम शृंगार-प्रसाधन मौजूद हैं. लेकिन अगर मौसम के असर का ध्यान न दिया जाये तो शायद ये भी व्यर्थ होंगे.

और सबसे बड़ी बात तो आपके स्वास्थ्य की है. स्वस्थ रहेंगे, तभी अच्छे और सुंदर भी दिखेंगे. लेकिन, फैशन के साथ सुंदर िदखने की चाहत में सब कुछ भुलाया जा रहा है. कुछ साल पहले करिश्मा कपूर पर एक गाना फिल्माया गया था- सेक्सी, सेक्सी मुझे लोग बोलें… लगता है बहुत सी औरतों ने इसी गाने को जैसे अपने जीवन की रिंगटोन बना लिया है.

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