निर्णय करें महबूबा

जम्मू-कश्मीर में सरकार गठन को लेकर अनिश्चितता कायम है. पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की मौत के एक माह बाद भी उनकी पार्टी पीडीपी न तो भाजपा के साथ गठबंधन जारी रखने और न ही नये मुख्यमंत्री के नाम पर कोई राय बना सकी है. राज्यपाल के निर्देश के बाद पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 9, 2016 12:14 AM

जम्मू-कश्मीर में सरकार गठन को लेकर अनिश्चितता कायम है. पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की मौत के एक माह बाद भी उनकी पार्टी पीडीपी न तो भाजपा के साथ गठबंधन जारी रखने और न ही नये मुख्यमंत्री के नाम पर कोई राय बना सकी है.

राज्यपाल के निर्देश के बाद पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने भाजपा नेतृत्व से गठबंधन की तय शर्तों को पूरा करने का स्पष्ट आश्वासन तो मांगा है, पर दोनों दलों की गतिविधियां बेहद सुस्त हैं.

दस माह पहले मुफ्ती सईद ने भाजपा के साथ करार कर राज्य की राजनीति में एक सकारात्मक पहल की थी, पर विश्लेषकों की मानें तो महबूबा मुफ्ती भाजपा के साथ सहज नहीं हैं. इसका कारण कश्मीर में उनकी पार्टी का घटता समर्थन और केंद्र सरकार के वादों के संदर्भ में उचित प्रगति न होना है. खबरों के मुताबिक इस मुद्दे पर पार्टी में भी एक राय नहीं है.

बहरहाल, किसी दल या गठबंधन की आंतरिक उलझन सरकार न बनने का बहाना नहीं हो सकती है. विधानसभा के कार्यकाल के पांच साल अभी बचे हुए हैं और राज्य की जनता को सरकार पाने का संवैधानिक अधिकार है. ऐसे में महबूबा मुफ्ती को जल्दी कोई निर्णय लेकर सरकार गठन की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए. पीडीपी-भाजपा गठबंधन के पास बहुमत है और अन्य दलों ने भी उनसे सरकार बनाने का आग्रह किया है.

यदि महबूबा या उनकी पार्टी को भाजपा से शिकायतें हैं, तो उन्हें मिल-बैठकर बात करनी चाहिए और यदि भाजपा उनकी मांगों के प्रति गंभीर नहीं है, तो उन्हें इसे भी स्पष्ट रूप से व्यक्त करना चाहिए. वे अपनी बात खुल कर राज्य की जनता के समक्ष भी रख सकती हैं. लेकिन, संवैधानिक प्रक्रिया और जनता को महीने-भर से असमंजस की स्थिति में रखना उचित राजनीतिक कदम नहीं माना जा सकता. महबूबा की तरह भाजपा की चुप्पी भी सही नहीं मानी जा सकती है.

अन्य नागरिकों की तरह जम्मू-कश्मीर के लोग भी विकास के आकांक्षी हैं. राज्य में अमन-चैन और भरोसे की बहाली के लिए ठोस पहलें की जानी हैं. लेकिन, निर्वाचित विधानसभा के होते हुए भी लोग सरकार से वंचित है और वहां राष्ट्रपति शासन लागू है.

दलगत लाभों और व्यक्तिगत हठधर्मिता के कारण अगर सरकार गठन में देरी हो रही है, तो इससे महबूबा मुफ्ती और पीडीपी को राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऊहापोह के कारण अटकलों का बाजार भी गर्म है. उम्मीद की जानी चाहिए कि महबूबा मुफ्ती अनिर्णय की इस स्थिति पर से परदा हटाते हुए जल्द ही सरकार बनाने की कवायद शुरू करेंगी.

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