फोटोग्राफर से खुदखींचन तक

नीलोत्पल मृणाल साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता अरसा पहले आपने पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों को फोटो खिंचवा लेने के लिए कहते, उनके आगे पीछे दौड़ते, उन्हें मनाते-रिझाते फोटोग्राफरों को देखा होगा. एक जमाना था जब इन फोटोग्राफरों का धंधा खूब चौकस था. समय बदला, स्मार्ट फोन आये, कैमरों के दिन लद गये. मोबाइल से पहले के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 10, 2016 12:49 AM

नीलोत्पल मृणाल

साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता

अरसा पहले आपने पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों को फोटो खिंचवा लेने के लिए कहते, उनके आगे पीछे दौड़ते, उन्हें मनाते-रिझाते फोटोग्राफरों को देखा होगा. एक जमाना था जब इन फोटोग्राफरों का धंधा खूब चौकस था. समय बदला, स्मार्ट फोन आये, कैमरों के दिन लद गये. मोबाइल से पहले के जमाने में फोटोग्राफर पर्यटकों की यात्रा को यादगार बनाते थे. आधे घंटे में फोटोग्राफर आपको ताजमहल के साथ खड़ा कर फोटो में उतार कर हाथ में लिफाफा थमा देता था.

गांव से लेकर कस्बों और शहरों तक स्टूडियो का एक खास जलवा था. फोटो खिंचाने का एक कायदा होता था, जिसे फोटोग्राफर लागू करता और खिंचानेवाले उसे माननीय न्यायालय के आदेश की तरह मानते. वह जब हुमायूं के मकबरे पर खड़े गांव से आये जोड़े को एक दूजे की कमर पकड़ने को कहता, तो कभी हाथ ना पकड़नेवाले जोड़े भी बेहिचक कमर पकड़ते.

फिर वह कहता- जरा हंसिये. पैर पीछे करिये. गर्दन दायें थोड़ा. मैडम आप भी हंसिये. आप भाई साब के कंधे पर हाथ रखिये. थोड़ा देखिये ईधर… और खरीदारी के वक्त हुए आपसी झगड़े के बाद उस जोड़े को फोटोग्राफर करीब ला देता था. ये फोटोग्राफर ही थे, जिन्होंने फोटो खींचने के एंगल खोज निकाले थे कि तीली जैसे आदमी की हथेली पर ताजमहल खड़ा हो जाता था.

उस दौर में शादी-ब्याह में स्टूडियो का बड़ा महत्व था. बात केसरी स्टूडियो की. जब भी कोई लड़की साड़ी पहन बायां हाथ नीचे किये, दांयी हथेली बांयी बांह पर रखे फोटो खिंचवाते दिखती थी, तो समझ जाते थे कि यह फोटो लड़के वालों को पसंद के लिए जायेगा. पिता लगातार फोटोग्राफर से कहता, देखियेगा केसरी जी थोड़ा लंबा दिखे ई फोटो में और जरा हाथ पर वाला कटा दाग बचा के. बढ़िया से खींचियेगा. बहुत परेशान हैं शादी के लिए. फोटोग्राफर धीरज धराता, घबराइये नय, हमरा खिंचा रिजेक्ट नय हुआ है आजतक, बेजोड़ फोटो निकालेंगे… यानी तब का फोटोग्राफर फोटो ही नहीं, रिश्ते भी खींचा करता था.

अब मोबाइल आ गया है. फटाक से खींच लिया, मेमोरी में सेव. मोबाइल ने हर आदमी के अंदर एक विश्वसनीय फोटोग्राफर पैदा कर दिया है, जो सब खींच लेना चाहता है. ऊपर से ‘खुदखींचन पद्धति’ (सेल्फी) चलन में आयी है और आदमी आत्मनिर्भरता के चरम दौर में है.

खुद का खुद खींच रहा है. लोग चेहरे की अजीब विचित्र भाव भंगिमा बना कर सेल्फी ले रहे हैं. लड़कियां कमर को अजीब तरह लचका, होठों को टेढ़ा गोल कर, नाक को विचित्र तरीके से सिकुल कर सेल्फी ले रही हैं. हर आदमी के पास अब खुद खींचने का क्रेज है. अब फोटोग्राफर वाला युग गया. पहले हम खिंचवाने के पैसे देते थे, अब खिंचवाने के पैसे मिलते हैं. ऐसे कई ‘खिंचरोगी’ हैं, जो गरीब बच्चों को पैसे देकर उनकी फोटो खींचते हैं.

भुखमरी, कंगाली की फोटो किसी भी अखबार या पत्रिका के लिए सबसे चमकदार फोटो साबित होती है. जो जितना वीभत्स है उतना दर्शनीय है. टांग खींचने से लेकर फोटो खींचने में एक्सपर्ट इस पीढ़ी से उम्मीद करता हूं कि जब भी कहीं जाएं, तो एक फोटो कैमरों का बोझ उठाये फोटोग्राफरों से जरूर खिंचवाएं.

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