राजनीति भूल गये मोदीजी!
राजीव रंजन झा संपादक, शेयर मंथन गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए नरेंद्र मोदी ने काम भी जम कर किया और राजनीति भी जम कर की. मगर दिल्ली आकर शायद यह कला भूल गये मोदीजी. एक कांग्रेसी मित्र की वाॅल पर एक चित्र में कैप्शन लिखा देखा- चोर निकला चौकीदार. यह पढ़ कर […]
राजीव रंजन झा
संपादक, शेयर मंथन
गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए नरेंद्र मोदी ने काम भी जम कर किया और राजनीति भी जम कर की. मगर दिल्ली आकर शायद यह कला भूल गये मोदीजी. एक कांग्रेसी मित्र की वाॅल पर एक चित्र में कैप्शन लिखा देखा- चोर निकला चौकीदार. यह पढ़ कर हंसी आ गयी और दिलवाले में शाहरुख खान का डायलॉग याद आ गया- ‘हम शरीफ क्या हुए, पूरी दुनिया ही बदमाश बन गयी.’
आज देश के दिग्गज उद्योगपति हों या भारत की अर्थव्यवस्था पर नजर रखनेवाले विदेशों के नामी-गिरामी लोग, वे बता रहे हैं कि केंद्र सरकार में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार खत्म हो गया है. जयंती टैक्स जैसी चीजें बीते जमाने की बात हो गयी हैं. विदेश से कालाधन लाने की बात पर भले ही मोदी सरकार की हंसी उड़ायी जा रही हो, मगर हकीकत यह है कि जानकार इस समय अर्थव्यवस्था की चाल धीमी रहने की एक बड़ी वजह कालेधन पर लगे अंकुश को मान रहे हैं.
यह एक विडंबना भले ही लगे, मगर तथ्य यही है कि हमारी घरेलू अर्थव्यवस्था में कालाधन भारी मात्रा में इस्तेमाल होता है और कालेधन पर अंकुश की वजह से भी अर्थव्यवस्था के पहिये जाम लग रहे हैं. कुछ दिनों पहले ही शेयर बाजार से जुड़े एक वरिष्ठ व्यक्ति ने बताया कि कालेधन की जरा-सी भी बड़ी रकम इधर-उधर (विदेश नहीं, देश के अंदर ही) भेजने में लोगों को डर लगने लगा है. फौरन आयकर विभाग का शिकंजा कस जाता है.
लेकिन, जिन लोगों को यह डर लगने लगा है, वे मीडिया में आकर बयान नहीं देते और ट्वीट करके नहीं बताते. वे आपस में भुनभुनाते हैं कि बड़ी मुश्किल हो गयी है, काम ही नहीं कर पा रहे.
मीडिया में बहस बस इस बात पर होती है कि विदेश से लाये गये कालेधन से हर खाते में 15 लाख रुपये जमा क्यों नहीं हुए अब तक. टीवी पर आकर बहस करनेवाले हर व्यक्ति को पता है कि न कभी ऐसा होना था, न ही यह चुनावी वादा था. अगर आप अपनी बात जनता तक ठीक से नहीं पहुंचा पा रहे, तो विरोधी आक्रमण का अवसर क्यों गंवाएं? अगर आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी रही कांग्रेस के लोग 2014 की भयानक पराजय के दो साल के भीतर ही मोदी सरकार पर लांछन लगाने का साहस करने लगे हैं, तो इसके पीछे खुद नरेंद्र मोदी की कुछ विफलताएं हैं.
मोदीजी, क्या आपने कांग्रेस के 10 साल के शासन में हुए सारे भ्रष्टाचार को माफ करने का मन बना लिया है? लेकिन ऐसा करनेवाले आप होते कौन हैं? किसने दिया आपको यह अधिकार? और अगर ऐसी बात नहीं है, तो डेढ़ साल से ज्यादा समय बीतने के बाद आप कांग्रेस शासन के किस भ्रष्टाचार पर कानूनी कार्रवाई को उसके तार्किक अंजाम तक पहुंचा पाये हैं?
‘दामाद जी’ आपके हर चुनावी भाषण में निशाने पर होते थे. अगर दामाद जी अब भी कानून की पहुंच से दूर हैं, तो आपको यह बताना ही होगा कि आप पहले हवा में तीर फेंक रहे थे या अब वास्तव में उनको शिकंजे में लेने से डर रहे हैं? आपकी ही पार्टी की राज्य सरकार से उनको क्लीन-चिट कैसे मिल रही है?
लोग आपसे क्यों न पूछें कि 2जी घोटाले और कॉमनवेल्थ घोटाले की फाइलें कहां अटक गयी हैं?
जो लोग खुद कांग्रेस सरकार के समय इन घोटालों की वजह से जेल गये थे, उनके मामलों में कानूनी प्रक्रिया आज आपके शासन में डेढ़ साल से ज्यादा समय बीतने के बाद भी क्यों पूरी नहीं हो सकी है? अगर आपने यह सब कर लिया होता, तो कोई यह कहने का साहस नहीं जुटाता कि चोर निकला चौकीदार. आप भले ही अपने-आप में खुशफहमी में डूबे रहें कि हम भ्रष्टाचार-मुक्त सरकार चला रहे हैं, मगर व्यापमं का अपयश आपके माथे पर भी आया है. ललित मोदी आज भी आपके प्रवर्तन निदेशालय की पहुंच से दूर है.
हमें पता है कि आप देश का बुनियादी ढांचा सुधारने में लग गये हैं. आपके मंत्री नितिन गडकरी बड़ी शान से बताते हैं कि यूपीए सरकार के आखिरी दिनों में केवल 3 किलोमीटर प्रति दिन की गति से राजमार्गों का निर्माण हो रहा था, जो अब बढ़ कर 13 किलोमीटर हो गया है और अगले दो साल में 30 किलोमीटर हो जायेगा. पर जनता इसका नाप-जोख नहीं देखती कि आपकी सरकार कितनी सड़कें बना रही है. वह देखती है कि दाल के भाव 200 रुपये पर क्यों चले गये और इतने समय के बाद भी नीचे क्यों नहीं आये हैं. प्रधानमंत्री जी, मीडिया दूसरी बातों में व्यस्त हो गया है और दाल की महंगाई अभी सुर्खियों में नहीं है.
लेकिन अपना राशन खरीदते समय हर आम आदमी अब भी इस बात के लिए आपकी सरकार को याद कर लेता है कि दाल बड़ी महंगी हो गयी है जी.
मुझे पता है कि बहुत सारी चीजें सस्ती भी हुई हैं और महंगाई दर नीचे चल रही है. लेकिन आपकी सरकार लोगों को इस बात का एहसास नहीं करा पा रही है, तो इसमें किसी और की गलती है क्या! आपका काम है, कोई दूसरा करेगा क्या! लोग तो यह भी देख रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत धूल चाट रही है. पिछले साल मई-जून में भी 60 डॉलर के आसपास होती थी, अब 30 डॉलर के आसपास है, मगर आप इसका फायदा जनता को देने के बदले अपना खजाना भरने में लगे हैं.
तेल के दाम घटते जाने के साथ-साथ उत्पाद (एक्साइज) शुल्क बढ़ाते जाने के लिए आपके राजनीतिक चाणक्य वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास जरूर कुछ मजबूत तर्क होंगे. लेकिन, ऐसा लगता है कि आपकी सरकार इन तर्कों से जनता को अवगत कराने के बदले चुप्पी में यकीन करती है. आप तो सोशल मीडिया के राजनीतिक इस्तेमाल के महारथी रहे हैं. क्या आपको दिख नहीं रहा कि पेट्रोल की कीमतों को लेकर उसी सोशल मीडिया पर आपकी सरकार की कितनी खिल्ली उड़ने लगी है?
सोशल मीडिया पर आपकी संवादहीनता तो इतनी बढ़ गयी है कि आप अपने उत्पाद शुल्क से कहीं ज्यादा वैट वसूलनेवाली राज्य सरकारों को कठघरे में खड़ा करने की भी जहमत नहीं उठा रहे. आप जितना उत्पाद शुल्क ले रहे हैं, उससे काफी ज्यादा वैट आम आदमी की पैरोकार बननेवाली और आपके विरोध में सबसे मुखर रहनेवाली पार्टी की राज्य सरकार वसूल रही है.
आपने उत्पाद शुल्क बढ़ाया, उन्होंने भी वैट बढ़ाया. लेकिन उन्होंने आपको कठघरे में खड़ा कर दिया, आप जवाब नहीं दे पाये. आप तो फसाने को हकीकत की तरह बेच लेने में माहिर समझे जानेवाले बाजीगर थे. अब लोगों के सामने हकीकत भी ठीक से पेश नहीं कर पा रहे हैं, तो कहीं-न-कहीं कुछ गड़बड़ है.
शायद आपने मान लिया है कि आप बहुत काम करेंगे, तो लोग आप पर राजनीतिक हमले नहीं करेंगे. विरोधी तो हमले करेंगे ही. हम मीडिया वाले भी सवाल उठायेंगे. यह हमारा काम है. काम करना और साथ में राजनीतिक जवाब देते रहना आपका काम है. जरा जग जायें, इससे पहले कि आप भी शाइनिंग इंडिया की ओर बढ़ जायें. थोड़ा कहा है, ज्यादा समझियेगा…