जय हो लतीफाबाजो! फेंकते रहो..

।। चंचल।। (सामाजिक कार्यकर्ता) हस्बे जैल अर्ज कर दूं कि हम न तो इतिहास के, न ही जुगराफिया के पढ़ाकू रहे, न ही हमारी कोइ दिल च च च चश्पी रही. हम इतना भर जानते हैं कि हमारा एक गांव है जो कई गांवों से घिरा है. यहां जो भी पढ़ाकू निकले सब के सब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 18, 2013 3:51 AM

।। चंचल।।

(सामाजिक कार्यकर्ता)

हस्बे जैल अर्ज कर दूं कि हम न तो इतिहास के, न ही जुगराफिया के पढ़ाकू रहे, न ही हमारी कोइ दिल च च च चश्पी रही. हम इतना भर जानते हैं कि हमारा एक गांव है जो कई गांवों से घिरा है. यहां जो भी पढ़ाकू निकले सब के सब एक लम्मर के फिसड्डी रहे. पढ़ाई लिखाई हियां किये और नाली साफ करने निकल गये परदेस .. लोग चुप रहे . लेकिन अकेले कितना बोलते चुनांचे कयूम मियां भी चुप हो गये. पर, ऐसा होता है क्या कि लोग चौराहे पर हों, चाय की भट्ठी गरम हो, अखबार सामने हो और लोग चुप रहें . नवल उपधिया से नहीं रहा गया. – कयूम काका! आप दिल तक तो ठीक रहे चस्पी पे चिकचिकाने लगे? कयूम ने दाढ़ी पर हाथ फेरा, मुस्कुराए .बोलना कुछ और चाह रहे थे लेकिन ऐनवक्त पर ठिठक गये. भोला लोहार क छोटका लड़िका ठीक सामने आकर खड़ा हो गया. -ये बाबू! किताब चाही. भोला इस मुसीबत के लिए तैयार होकर तो आये नहीं थे.

लिहाजा उन्हें घुड़कना पड़ा -कैसी किताब बे? नागरिक शास्त्र की. भोला ने टालना चाहा-चल सांङो के मिल जाई. लड़का फैल गया. -हम इसकूल ना जाबे, मनीजर साहिब निकाल देंगे..भोला ने लंबी-सी गाली दी -मनीजर की .. बहरहाल वह किसी तरह रोते हुए आगे बढ़ा. लाल साहब ने भोला को अर्दभ में लिया -ये भाई . इ लड़िका तो हू ब हू वही बोलता रहा जैसा अपने घर में सब बोलते हैं? चिखुरी ने लाल साहब को तरेरा – तो अंगरेज हो जायगा? लाल साहेब संभले – नहीं जे नहीं, काका, जैसे कि टाई लगाता है जूता पहिनता है. अंगरेजी मीडियम में पढ़ता है इस लिए..भोला समझ गये कि लाल साहब क्या कह रहे हैं. भोला ने पलटवार दिया-ये बाबू साहेब! तो आप क्या चाहते हैं कि जिनगी भर ससुरा लोहार ही बना रहे और आपकी खटिया साले? हमें भी तो पढ़ने लिखने का अधिकार मिला है. हम भी तो आगे बढ़ सकते हैं? लाल साहेब अंगरेजी और अंगरेजियत के कत्तई खिलाफ हैं -सरकार सब कुछ दे रही है. किताब,कपड़ा, भोजन-वजीफा.और का चाही भाई इ अंगरेजी मीडियम से कोइ तपो तलवार निकला हो तो बताओ? बराबाद कर रहा है ससुरा. ये लौंडे खेलना तक भूल गये हैं. किसी लड़के को हंसते हुए नहीं देखोगे. ससुरे बचपन में ही बुढ़ा गये हैं. इसकूल जाते समय इनका थोभड़ा देखो, लगता है कसाईबाड़ा जा रहे हों. चिखुरी ने बहस को घुमाया-उधर का सुनिए . हा मियां क्या कह रहे थे? कयूम ने पोज बदला.

हम इ कह रहे थे कि इतिहास क्यों पढ़ाया जाता है ? लखन कहार से नही रहा गया – अजीब बात करते हो भाई, सरकार ने मदरसा खोला है. टीचर रखे हैं . तो क्या दंड -बैठकी करने के लिए यह सब कर रही है? कुछ न कुछ तो पढ़ाना है सो लगे हाथ यह हिथास भी पढ़ा देते हैं. हिथास नहीं इतिहास कहते हैं उमर दरजी ने ठीक किया. कयूम चिखुरी से मुखातिब हुए- कहां जाहिलों में फंस गया-चिखुरी आपै बताओ -इतिहास का कोइ ताल्लुक है इस अवाम से कि वह इसको जाने? चिखुरी ने मूछ को सीधा किया-है ताल्लुक है. अव्वल तो यह कि यह आपकी कद को नापता है. कल आप कितने बड़े थे आज कितने बड़े हैं. उमर दरजी से नहीं रहा गया-जे बात तो सही है. हमारे परदादा हुजूर मरहूम मियां खालीफुर्रह्मान अल्लाताला उन्हें जन्नत बख्सें किस्सा बताते थे कि एक बाबू सुन्नर सिंह रहे बारहों महीने बस एक गो गमछा पहना करते थे. थे तो गरीब पर बला की ताकत थी. दस गज की ऊंचाई रही होगी.

उनके ताकत की चर्चा उनके ससुराल तक थी. एक बार जब वो अपनी ससुराल गये तो उनके साले ने खुराफात कर डाली. एक बबूल के पेड़ को काट कर खूंटे की तरह गढ़ दिया और बोला कि इस खूंटे को उखाड़ दीजिए तो जानें. सोन्नर सिंह लगे उखाड़ने, उखाड़ तो दिये जड़ समेत बबूल उखड़ा तो बीघा भर माटी भी जड़ के साथ उखड गयी..कीन उपधिया ने डाटा-अबे बकवास तो मतिय कर सुन जो चिखुरी बता रहे हैं . हां तो दादा वो जो उस दिन पटना में चाणक्य वाली बात हुई थी कि वह इतिहास का स्वर्णिम युग था. है न सही? जीत की मुद्रा में बैठे कीन ने यह सवाल पूछ कर साबित करना चाहा कि वह और उसकी पार्टी विजय की ओर बढ़ रही है. इस लिए उसने जोत्था भर चूनी को दो बार सहलाया और लगा चिखुरी का चेहरा देखने. चिखुरी संजीदा हो गये. क्या स्वर्णिम युग था? अच्छा किया कि तुम लोगों ने पढ़ने लिखने की गलती नहीं की. उस काल में किसान अपनी उपज का चौथाई हिस्सा हुकूमत को देती थी. यह कायदा था. बकलोल! इतिहास को गंभीरता से देखना चाहिए. उसी काल में जाति की जकड़न बढ़ी. आज तक हम भुगत रहे हैं . बाभन होकर जूते की दूकान खोलोगे और पैलाग्गी न की जाय तो ताव खाजाओगे . बाबूसाहेब बेचेंगे अंडा और मूछो पर ताव दिये घूमेंगे. इजलास तिवारी ने गमछे से मुह पोछा – फिर एक बात समझ में नहीं आती कि वह बार बार ऐसी हरकत क्यों कर रहा है ?

चिखुरी सुराजी हैं , कांग्रेसी हैं , उसकी तरफदारी तो करेंगे ही .कहते हुए लाल साहब उठ गये. अबे सुन हे लाल साहेब ..चिखुरी ने चुनौती दी. मारिये गोली, ये बताइये आज के अखबार में क्या है? लिखा है -सियासत जब गरम हो, चुनाव सामने हो,और कुछलोग जो हिंसा के जद में आ जायं तो उन्हें हवाई अड्डे के पास पैदा होना चाहिए. इसका मतलब? यह तो लंगड़ी भिन्न से भी कठिन है, उसे ही तो सुलझा रहा हूं. नवां ने साइकिल की घंटी बजायी और सप्तम में निकल गये. गाते गाते -झुलनी का रंग सांचा .. हमार पिया .

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