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ताकि बरकरार रहे परिवार की कड़ी

हम पश्चिमी देशों की चकाचौंध में इस तरह अपने आप को खत्म कर रहे हैं कि हम पति-पत्नी, परिवार के संबंध व अपनेपन की भावना को भूलने लग गये हैं. वह परिवार ही क्या जो एक-दूसरे के प्रति संवेदनाशून्य हो और जिसे अपने को खोने का गम ही नहीं? क्या हमें अपनी संस्कृति व सभ्यता […]

हम पश्चिमी देशों की चकाचौंध में इस तरह अपने आप को खत्म कर रहे हैं कि हम पति-पत्नी, परिवार के संबंध व अपनेपन की भावना को भूलने लग गये हैं. वह परिवार ही क्या जो एक-दूसरे के प्रति संवेदनाशून्य हो और जिसे अपने को खोने का गम ही नहीं?

क्या हमें अपनी संस्कृति व सभ्यता से मोहभंग हो गया है? जरा सी तू-तू, मैं-मैं हुई कि तलाक की नौबत आ जाती है. संबंधों में सहनशीलता खत्म होती जा रही है.

तलाक का मामला उन परिवारों में ज्यादा देखने को मिलता है, जो वर्तमान में खुद को विकसित और समृद्ध मानते हैं. इस वर्ग को सिर्फ खुद की परवाह होती है और केवल अपना ही स्टेटस नजर आता है. आखिरकार पति-पत्नी से परिवार बनता है, ऐसे में क्या खुशहाल परिवार की परिकल्पना बिना उनके साथ रहे संभव है?

– मदन मोहन शास्त्री, देवघर

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