संतोष धन के आगे सब मिट्टी

दिन-रात हमारी दौड़ भौतिक सुख-सुविधाओं का संग्रह करने में लगी रहती है, जिसके पीछे मकसद एक ही है सुख-शांति की प्राप्ति. कहते हैं, गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन-धन खान/ जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान// यानी सबसे बड़ा धन क्या हुआ? ‘संतोष-धन’. लेकिन हो इसका ठीक उलटा रहा है. सुख-शांति के बजाय दु:ख […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 15, 2016 11:15 PM
दिन-रात हमारी दौड़ भौतिक सुख-सुविधाओं का संग्रह करने में लगी रहती है, जिसके पीछे मकसद एक ही है सुख-शांति की प्राप्ति. कहते हैं, गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन-धन खान/ जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान// यानी सबसे बड़ा धन क्या हुआ?
‘संतोष-धन’. लेकिन हो इसका ठीक उलटा रहा है. सुख-शांति के बजाय दु:ख और अशांति मिलती है. यानी कोई न कोई गलती तो हो रही है हमसे. और वह गलती है हमारी सोच की. संत-महात्मा कह गये हैं कि जिस सुख, शांति, संतुष्टि को तुम चाहते हो, वह सदैव तुम्हारे अंदर है, बस अंतर्मुख होने की जरूरत है.
ज्ञान द्वारा हमारा चिंतन अंतर्मुखी हो सकती है. ज्ञान-चिंतन से ईश्वर के प्रति प्रेम व समर्पण का भाव जागृत होता है, जिससे संतोष धन की सहज ही प्राप्ति हो जाती है.
– मनोरंजन भारती, गोमो

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