पाक को अमेरिकी शह

पठानकोट हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ बने वैश्विक माहौल के बीच अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आधे दाम पर आठ एफ-16 लड़ाकू विमान देने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है. पाकिस्तान द्वारा अपने देश में आतंकी गुटों और चरमपंथियों को समर्थन और सहयोग देने तथा उनका भारत व अफगान के खिलाफ इस्तेमाल करने की रणनीति नयी नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 15, 2016 11:19 PM
पठानकोट हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ बने वैश्विक माहौल के बीच अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आधे दाम पर आठ एफ-16 लड़ाकू विमान देने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है. पाकिस्तान द्वारा अपने देश में आतंकी गुटों और चरमपंथियों को समर्थन और सहयोग देने तथा उनका भारत व अफगान के खिलाफ इस्तेमाल करने की रणनीति नयी नहीं है.
संबंधित तथ्यों और सूचनाओं से अमेरिका न सिर्फ भली-भांति परिचित है, बल्कि कई बार उसने पाकिस्तान को चेतावनी भी दी है. पिछले कुछ दिनों में ऐसे कई मौके आये, जब आतंकी कार्रवाइयों में पाक सेना और सरकार की मिलीभगत के संकेत मिले हैं.
जहां आतंकी डेविड हेडली ने इस संबंध में कई खुलासे किये हैं, वहीं पूर्व पाक राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी इसे स्वीकारा है. यह किसी से छिपा नहीं है कि कुख्यात खुफिया एजेंसी आइएसआइ के तार लश्कर से लेकर तालिबान तक जुड़े रहे हैं. पाक सेना और सरकार अफगानिस्तान में जिन तत्वों को प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन देती रही हैं, वे अमेरिकी हितों के लिए भी बेहद खतरनाक हैं.
अमेरिका का यह कहना कि ये विमान आतंकियों के खिलाफ इस्तेमाल होंगे, बेमानी है. हकीकत यह है कि इन लड़ाकू विमानों को पाकिस्तान सिर्फ तीन स्थितियों में ही प्रयुक्त करेगा- भारत एवं अफगानिस्तान के खिलाफ, अफगानिस्तान में तालिबान व अलकायदा की गतिविधियों में मदद के लिए और बलूचिस्तान में बर्षों से जारी नरसंहार में तेजी लाने के लिए.
ऐसे समय में, जब आतंक और मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े मसलों तथा दक्षिण एशिया में व्याप्त अशांति में उसकी भूमिका पर पाकिस्तान से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जवाब-तलब करना चाहिए था, दुनियाभर में चौधराहट का खम भरनेवाला अमेरिका पाक सेना को अत्याधुनिक हथियारों की आपूर्ति कर रहा है.
इससे पाक सेना और आइएसआइ का मनोबल बढ़ेगा. इससे न सिर्फ आतंक और हिंसा को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि दक्षिण एशिया में हथियारों की होड़ भी तेज होगी. यह स्थिति क्षेत्रीय स्थिरता के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है. इसका नकारात्मक असर भारत-पाक शांति प्रक्रिया पर भी पड़ सकता है. दक्षिण एशिया में दुनिया के सर्वाधिक गरीब बसते हैं और यह क्षेत्र सबसे अशांत इलाकों में भी गिना जाता है.
कई अमेरिकी सांसदों के विरोध के बाद अमेरिकी सीनेट की विदेश कमिटी के प्रमुख ने इस सौदे से मना कर दिया था, लेकिन सरकार ने इसे मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति ओबामा और उनकी सरकार को ऐसे सभी प्रस्तावों पर पुनर्विचार करना चाहिए, जो आतंकवाद पर उनके दोहरे रवैये के परिचायक हैं.

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