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पीएम करें हस्तक्षेप
प्रतिकूल परिस्थितियों में संयम और विपरीत विचारों के साथ सहनशीलता किसी समाज के सभ्य, शांतिप्रिय एवं प्रगतिशील होने की निशानी है. अतीत में तमाम बाहरी आक्रमणों और आजादी के बाद भी देश के विभिन्न हिस्सों में उभरे अनेक संघर्षों के बावजूद यदि भारत की सामाजिक व्यवस्था मजबूत बनी रही है और इसे ‘अनेकता में एकता’ […]
प्रतिकूल परिस्थितियों में संयम और विपरीत विचारों के साथ सहनशीलता किसी समाज के सभ्य, शांतिप्रिय एवं प्रगतिशील होने की निशानी है. अतीत में तमाम बाहरी आक्रमणों और आजादी के बाद भी देश के विभिन्न हिस्सों में उभरे अनेक संघर्षों के बावजूद यदि भारत की सामाजिक व्यवस्था मजबूत बनी रही है और इसे ‘अनेकता में एकता’ का देश कहा जाता है, तो इसकी सबसे बड़ी वजह यही रही है. लेकिन, प्रतिष्ठित जेएनयू से जुड़े प्रकरण में पिछले एक हफ्ते का देशव्यापी घटनाक्रम भारतीय समाज की एकता के तानेबाने पर चोट करता प्रतीत हो रहा है.
जेएनयू परिसर में बीती नौ फरवरी को जिस तरह से देश विरोधी नारे लगाये गये, उसकी जितनी भी निंदा की जाये कम होगी. शिक्षण संस्थानों में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ सिरफिरे छात्रों को आपत्तिजनक हरकत की छूट कतई नहीं दी जा सकती. लेकिन, नारे लगानेवालों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय, इस घटना को जिस तरह से राजनीतिक रंग दिया गया, वैचारिक विरोधियों को ‘देशद्रोही’ बताने की होड़ शुरू हुई, फर्जी ट्वीट के आधार पर मामले को लश्कर सरगना हाफिज सईद से जोड़ दिया, छात्रों और मीडियाकर्मियों पर अदालत परिसर में पुलिस की मौजूदगी में हमले हुए, एक वामपंथी दल के दफ्तर पर हमला किया गया, यह सब उससे कहीं बड़ी चिंता का सबब बन रहा है.
इन अतिवादी घटनाओं में मूल घटना के कारणों को समझने और उनके समाधान की चेष्टा सिरे से गायब है. इससे यह भी जाहिर होता है कि कुछ सिरफिरे छात्रों की नादानी की आड़ में उग्र मानसिकता वाले लोग समाज में दरार पैदा करने में सफल हो रहे हैं और शासन-प्रशासन लोगों को कानून हाथ में लेने से रोक पाने में विफल हो रहा है.
ऐसे में यह सही ही है कि कुछ प्रमुख विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप की गुहार लगायी है. 23 फरवरी से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र से पहले प्रधानमंत्री द्वारा बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक में भी विपक्षी नेताओं ने उनसे कहा कि वह सिर्फ बीजेपी के नहीं, बल्कि पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं.
सबका साथ-सबका विकास के नारे के साथ सत्ता में आये प्रधानमंत्री से यह उम्मीद की ही जानी चाहिए कि मनभेद पैदा करनेवाली कोशिशों पर वे लगाम लगायेंगे. अच्छी बात है कि बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि वे ‘देश के नेता के तौर पर कार्रवाई करेंगे, न कि एक पार्टी के नेता के तौर पर’ और बैठक के बाद संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि ‘सरकार विपक्षी दलों की चिंताओं को दूर करेगी.’ उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार देश-समाज में अमन-चैन का माहौल बिगड़ने नहीं देगी.
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