एक अरब से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं वाले देश भारत को डिजिटल बनाने के महत्वाकांक्षी अभियान के साथ ‘कॉल ड्राप’ (बात करते-करते कॉल कट जाना) पर लगाम लगाने की सरकारी कोशिशों की खबरें भी बीते कई महीनों से बार-बार सुर्खियां बटोरती रही हैं.
लेकिन, दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राइ) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि इन कोशिशों का फिलहाल धरातल पर खास असर नहीं हुआ है. ट्राइ की रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर, 2015) के दौरान कॉल ड्रॉप के मामले में कुछ ऑपरेटरों का प्रदर्शन और खराब हुआ है. ट्राइ ने पाया है कि पूर्वोत्तर और ओड़िशा में 3जी सेवाओं में एक कंपनी की ‘काल ड्रॉप दर’ सर्वाधिक 18 प्रतिशत तक रही, जो इससे पहले की तिमाही से अधिक है. ट्राइ द्वारा तय मानदंडों के अनुसार कॉल ड्रॉप की दर दो प्रतिशत, और खराब से खराब स्थिति में भी तीन प्रतिशत, से अधिक नहीं होनी चाहिए. लेकिन, कुछ कंपनियों की कॉल ड्रॉप दर ज्यादातर टेलीकॉम सर्किलों में इससे अधिक रही है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 29 फीसदी लोगों ने कॉल का प्रति मिनट प्लान ले रखा है, जिनसे मोबाइल कंपनियों को आय का 41 फीसदी हिस्सा हासिल होता है. ऐसे ग्राहकों को चंद सेकंड के बाद कॉल ड्रॉप होने पर भी पूरे मिनट का पैसा देना पड़ रहा है. इस तरह ‘कॉल-ड्रॉप’ कंपनियों के लिए बड़ी अनैतिक आमदनी का जरिया है और लगता है कि इसे सुधारने में उनकी खास रुचि नहीं है. कंपनियों पर दबाव बढ़ाने की नीति के तहत ट्राइ ने पिछले साल अक्तूबर में तय किया था कि उन कंपनियों के नाम भी सार्वजनिक किये जाएंगे, जिनकी कॉल ड्रॉप दरें तय मानकों से ज्यादा होंगी, लेकिन इससे भी खास फर्क नहीं पड़ा है.
ट्राइ के मुताबिक, जिन कंपनियों की सेवाओं में कॉल ड्रॉप की शिकायत ज्यादा है, उनमें एयरसेल पहले नंबर पर है. हालांकि इसमें कुछ अन्य निजी कंपनियों के साथ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बीएसएनएल भी शामिल है. डिजिटल होते भारत में इ-कॉमर्स बाजार के तेजी से बढ़ते बाजार के लिहाज से देखें तो नेटवर्क कटने लोगों को कई दूसरे स्तरों पर भी चूना लग रहा है.
मसलन, कई मौकों पर खरीदारी के बिना ही उनके बैंक खाते से राशि कट जा रही है, जिसे वापस पाने के लिए वे कई दिनों तक परेशान होते हैं. जाहिर है, ‘डिजिटल इंडिया’ का ख्वाब तभी पूरा होगा, जब पूरे देश में, गांव-कस्बों में, मोबाइल नेटवर्क की गुणवत्ता बेहतर होगी.