किसानों को राहत

खेती खुले आसमान के नीचे होती है. किसान अपने सब्र और मेहनत के फल को धन्नासेठों की तरह तिजोरी में भर और उस पर ताले जड़ कर नहीं रख सकता. शायद इसी कारण किसान की कमाई पर सबकी नजर लगती आयी है. अकसर तो यह नजर मौसम और आसमान ही लगाता आया है. कभी अतिवृष्टि, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 19, 2016 12:36 AM
खेती खुले आसमान के नीचे होती है. किसान अपने सब्र और मेहनत के फल को धन्नासेठों की तरह तिजोरी में भर और उस पर ताले जड़ कर नहीं रख सकता. शायद इसी कारण किसान की कमाई पर सबकी नजर लगती आयी है. अकसर तो यह नजर मौसम और आसमान ही लगाता आया है.
कभी अतिवृष्टि, कभी अनावृष्टि, तो कभी ओलावृष्टि! और यदि इनकी मार से फसल बच निकली, तो भी इसकी गारंटी नहीं रहती कि बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच वाजिब मोल हासिल होगा या फिर हासिल मोल का बड़ा हिस्सा साहूकारों के हत्थे जाने से बचा रहेगा.
ऐसी आशंकाओं के बहुमुखी जाल से किसानों को निकालने के लिए सुरक्षा की कोई कारगर व्यवस्था तो होनी ही चाहिए. कृषि बीमा योजनाओं को आपातिक राहत की ऐसी ही व्यवस्था के रूप में देखा जाता रहा है. बीमा योजनाएं फसल का वाजिब मोल दिलाने या किसान को सूदखोरों के जाल से बचाने का काम तो नहीं करतीं, पर मौसम की मार से बचाने में इसकी भूमिका निर्णायक हो सकती है.
हालांकि, 100 में से 80 किसान अब तक चलायी गयी कृषि बीमा योजनाओं पर अलग-अलग कारणों से भरोसा नहीं करते और मात्र 20 फीसदी किसान ही ऐसी योजना का लाभ ले पा रहे हैं. यह बात खुद प्रधानमंत्री ने गुरुवार को नयी फसल बीमा योजना की विधिवत शुरुआत करते हुए कही. ऐसे में कृषि बीमा योजना की विसंगति को दूर करने की मंशा के कारण नयी योजना एक सराहनीय कदम है.
योजना में कई अच्छी बातें हैं. मसलन इसमें खरीफ की फसल के लिए दो फीसदी और रबी की फसल के लिए डेढ़ फीसदी प्रीमियम देना होगा, शेष प्रीमियम का भार राज्य और केंद्र सरकारें उठायेंगी. बीमा क्लेम का 25 फीसदी किसानों को तुरंत मिलेगा, जबकि पहले इसमें देरी होती थी. फसल के नुकसान के आकलन और बैंक को इस बारे में मिलनेवाली सूचना से संबंधित कुछ अत्यंत बाधक शर्तों को भी उदार बनाया गया है. अब यह बीमा योजना कृषि-संकट के निवारण में कितनी सफल होगी, यह बहुत कुछ नीति-निर्माताओं की नीयत और वास्तविकता के सही आकलन पर निर्भर है.
उस महाराष्ट्र में, जहां बीते 45 दिनों में 124 किसानों ने आत्महत्या की हो, सत्ताधारी दल के एक सांसद का यह कहना कि किसानों के बीच आत्महत्या एक फैशन की तरह है, नीति-निर्माताओं की नीयत पर शक पैदा करता है. फिलहाल, उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार नयी फसल बीमा योजना को कारगर बनाने के साथ-साथ किसान को फसल के वाजिब दाम दिलाने के अन्य उपायों के बारे में भी गंभीरता से सोचेगी.

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