डॉक्टरों व दवाइयों के बीच फंसा गरीब

चिकित्सा विज्ञान के जनक ‘चरक’ ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन उनका यह प्रयास व्यवसाय में बदल जायेगा और व्यापक पैमाने पर गोरखधंधे का जरिया बन जायेगा. अस्पताल से लेकर गली-कूचे तक कुकुरमुत्ते की तरह फैले मेडिकल स्टोर के नेटवर्क का जाल, चिकित्सकों के लिए पैसे कमाने का साधन बन चुका है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 20, 2016 6:44 AM
चिकित्सा विज्ञान के जनक ‘चरक’ ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन उनका यह प्रयास व्यवसाय में बदल जायेगा और व्यापक पैमाने पर गोरखधंधे का जरिया बन जायेगा. अस्पताल से लेकर गली-कूचे तक कुकुरमुत्ते की तरह फैले मेडिकल स्टोर के नेटवर्क का जाल, चिकित्सकों के लिए पैसे कमाने का साधन बन चुका है. वहीं, गरीबों के लिए यह दैवीय प्रकोप से कम नहीं है. महंगे इलाज से घबरा कर गरीब ग्रामीण जनता बीमारी को दैवीय प्रकोप मान बैठती है.
बीमार होने के बावजूद लंबी-लंबी लाइनों में घंटों पसीना बहाने के बाद मरीज का रजिस्ट्रेशन होता है, फिर चिकित्सक चेंबर के बाहर घंटों अपनी बारी का इंतजार. ऐसी स्थिति कमोबेश सारे सरकारी अस्पतालों की है. सड़क हादसों में घायल असहायों, गंभीर अवस्था में लोगों को कई सरकारी अस्पताल बड़े अस्पतालों में रेफर करके पीछा छुड़ा लेते हैं, जबकि इनका इलाज वहां संभव होता है.
-आदित्य शर्मा, दुमका

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