‘जनेऊ’ का बवाल!
चंचल सामाजिक कार्यकर्ता ई जनेऊ का बवाल का है फलाने? लखन कहार के सवाल पर नवल उपधिया को हंसी आ गयी- जनेऊ? जनेऊ के बारे में कीन उपधिया को ज्यादा जानकारी होगी, क्योंकि दिन में जितनी बार भी उन्हें लघुशंका सताती है, उतनी बार ये इसे बंदी से निकालते हैं और कान को पकड़ कर […]
चंचल
सामाजिक कार्यकर्ता
ई जनेऊ का बवाल का है फलाने? लखन कहार के सवाल पर नवल उपधिया को हंसी आ गयी- जनेऊ? जनेऊ के बारे में कीन उपधिया को ज्यादा जानकारी होगी, क्योंकि दिन में जितनी बार भी उन्हें लघुशंका सताती है, उतनी बार ये इसे बंदी से निकालते हैं और कान को पकड़ कर बांध देते हैं, फिर लघुशंका करने भागते हैं. क्यों भाई कीन, सही कहा न? कीन मुस्कुराये, वे जानते हैं कि जितने भी गैर-संघी हैं, सब किसी न किसी बात पर हमें लपेटेंगे ही. चुनांचे, इनसे बच के ही रहना चाहिए.
लाल्साहेब, जो अब तक भट्ठी सुलगा रहे थे, ने नया जुमला फेंका- लघुशंका मतलब यही न? कहते हुए उन्होंने दाहिने हाथ की कंगुरिया खड़ी कर दी. नवल ने तस्दीक कर दी- हां वही भाई, जो हम लोग बचपन में स्कूल मास्टर को दिखा कर भाग जाते थे झाड़ी की तरफ.
लाल्साहेब ने अब दूसरा सवाल ठोंका- एक बात बताओ गुरु! कान क्यों बाधते हो, कि इधर से न निकल जाये? कीन गुस्सा हो गये- यह तो हद्द है, किसी का मजाक ऐसे उड़ाया जाता है? यह हमारा धर्म है, हिंदू धर्म. भिखई मास्टर ने सवाल को टेढ़ा किया- मतलब जो जनेऊ न पहने वह हिंदू नहीं है? मद्दू पत्रकार को मौका मिल गया- ये अज्ञानी है कीन. इसे माफ कर दो. किसी जमाने में जब समाजवादियों ने जनेऊ तोड़ो आंदोलन शुरू किया, तो हॉफ पैंटवालों ने जम्मू की एक सभा में जेपी पर हमला कर दिया था.
चिखुरी अखबार में उलझे थे, बोले- ये अचानक जनेऊ कहां से आ गया?
मामले को संभाला लखन कहार ने- आप तो जानते ही हैं दादा! जबसे आपने कहा कि अखबार बिक गये हैं, हमने पढ़ना और टीवी देखना बंद कर दिया, लेकिन ससुरा मन नहीं मानता. बिल्लुआ से पूछ लेता हूं. आज दो दिन से वह एक ही बात बोल रहा है- जनेऊ का बवाल. कयूम मियां चौंके- जनेऊ का बवाल? मद्दू पत्रकार ने ठहाका लगाया. जे बात! भाई वो जनेऊ नहीं जेएनयू है, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी.
इतना सुनना था कि कीन उपधिया पार्टी लाइन पर आ गये- बवाल नहीं जे सब सच है, वहां राष्ट्रद्रोही रहते हैं, भारत माता के खिलाफ नारे लगाते हैं, पाकिस्तान जिंदाबाद बोलते हैं, इन्हें गोली मार देनी चाहिए. नवल भड़क गये- कौनो पनही ना पहने है रे, मार तो चार पनही उही मुंह पे, के कहत रहा बे कि हुआं ई सब होता है? मद्दू पत्रकार ने रोका- असल बात जे है कि उस विश्वविद्यालय में ज्यादातर छात्र और अध्यापक कम्युनिस्ट विचार के हैं.
यह बात संघी घराने को कत्तई पसंद नहीं. संघी जब सरकार में आये, तो लगे उसके खिलाफ षड्यंत्र करने. इसके लिए अपने ही लोगों से देश-विरोधी नारे लगवाये और नाम डाल दिये छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार का और गिरफ्तार भी कर लिये. इतना ही नहीं घर मंत्री ने ताबक-तोड़ हाफिज सईद के समर्थन का भी ऐलान कर दिये.
कयूम मियां ने पूछा- ई हाफिज कौन है भाई?
यह दुनिया का माना हुआ आतंकी है. इसके बारे में अपने घर मंत्री ने बोल दिया कि इसने विश्वविद्यालय के अलगाववादी ताकतों का समर्थन किया, जो कि गलत साबित हुआ. इस तरह तो अपनी सरकार चल रही है और जेल में जलालत झेल रहा है एक बेगुनाह कन्हैया कुमार.
ये कन्हैया कुमार क्या है? किसी ने सवाल उछाला…
कन्हैया कुमार की कई गलतिया हैं. एक- कन्हैया बिहार का है. सरकार को लगा कि बिहार दिल्ली में आकर मुंह चिढ़ा रहा है. दो- कन्हैया जेएनयू छात्रसंघ का अध्यक्ष बना और यह दिल्ली में है.
जेएनयू बिहार या उत्तर प्रदेश में होता, तो कोई बात नहीं, लेकिन दिल्ली में आकर चुनौती देगा? तीन- कन्हैया कम्युनिस्ट भी निकला. कम्युनिस्ट नाम सुनते ही संघ का खून खौल जाता है. चुनांचे, सरकार को पूरा हक है कि जो उससे सहमत न हो, उसे उसकी मरम्मत कर दे. इसीलिए उन्होंने सोचा कि कन्हैया को इसी फेर में फंसा कर तीन सजाएं दी जायें. एक- जेल, दो- यातना और तीन- अपने लोगों को खुली छूट कि उसे अदालत के सामने शारीरिक धुलाई की जाये. और यही हुआ.
नतीजा का रहा? लखन पूछे. चिखुरी बोले- होना क्या था, सब खेल उजागर हो गया, नारा लगानेवाले संघी, शिकायत करनेवाले संघी, पुलिस संघ की, जाे अब कह रही है गलती हो गयी. घर मंत्री की एजेंसी कह रही है कन्हैया निर्दोष है. सारा देश कुनमुना गया. आज कन्हैया के लिए देश के सबसे बड़े वकील सोली सोराब जी वकालत करने को तैयार हैं.
नवल ने सवाल उठाया- तो ये लोग ऐसा करते क्यों हैं?
माहौल बिगाड़ने, तनाव बढ़ाने के लिए. अभी बीजापुर में संघ के छह लड़के पकड़े गये हैं, जिन्होंने तहसील की इमारत पर चुपचाप पाकिस्तानी झंडा लटका आये थे. पकड़े गये हैं. इसका जवाब देश की सरकार नहीं दे पा रही है. यह है गुजरात माॅडल.