डिजिटल इंडिया और फ्रीडम 251
भारत ऐसा देश है, जहां जनता सहजता से परिवर्तन स्वीकार नहीं करती है. अतीत में झांकें तो देश ने कंप्यूटर का भी व्यापक विरोध देखा है, जो आजकल देश की विभिन्न व्यवस्थाओं की रीढ़ की हड्डी साबित हुआ है. ऐसा ही विरोध तब शुरू हुआ, जब भारत सरकार की पहल पर डिजिटल इंडिया की नींव […]
भारत ऐसा देश है, जहां जनता सहजता से परिवर्तन स्वीकार नहीं करती है. अतीत में झांकें तो देश ने कंप्यूटर का भी व्यापक विरोध देखा है, जो आजकल देश की विभिन्न व्यवस्थाओं की रीढ़ की हड्डी साबित हुआ है. ऐसा ही विरोध तब शुरू हुआ, जब भारत सरकार की पहल पर डिजिटल इंडिया की नींव रखी गयी.
उद्देश्य बिलकुल स्पष्ट था, देश की जनता को सरकारी विभाग से जोड़ना, जिससे सारी सुविधाएं जनता तक इलेक्ट्रॉनिक रूप से पहुंच सकें और ग्रामीण क्षेत्रों को भी इंटरनेट से जोड़ा जाये, ताकि प्रदाता और उपभोक्ता दोनों को लाभ मिले. डिजिटल इंडिया के कार्यान्वयन के लिए मुख्य रूप से नौ स्तंभ तय किये गये, ब्राॅडबैंड टू हाइवे, मोबाइल कनेक्टिविटी, इंटरनेट एक्सेस, ई-शासन, ई-क्रांति, इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी, इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण, रोजगार हेतु आइटी और हार्वेस्ट कार्यक्रम पर बल देना. अगर बारीकी से देखें, तो डिजिटल इंडिया में हर समस्या को छूने की कोशिश की गयी है. लेकिन, जैसा भारत में अक्सर होता है, यह कार्यक्रम अपने गर्भ से ही आलोचना का शिकार होने लगा. इसमें सबसे सटीक और सार्थक आलोचना यह है कि आखिर सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में यह कार्यक्रम पहुंचायेगी कैसे?
क्योंकि, जो किसान दाने-दाने को मोहताज है, वह महंगा मोबाइल कैसे खरीद सकता है, जो इंटरनेट के उपयोग के लिए आवश्यक है. लेकिन, रिंगिंग बेल कंपनी ने महज 251 रुपये में स्मार्टफोन लाकर डिजिटल इंडिया के सारे आलोचकों को सकते में डाल दिया है. तमाम सुविधाओं से लैस, एक साल की वारंटी तथा 600 से अधिक सर्विस सेंटर सपोर्ट इस मोबाइल फोन को डिजिटल इंडिया की रीढ़ बना सकता है.
लेकिन, यह मोबाइल तभी कारगर होगा, जब इसमें इंटरनेट की सुविधा हो. ऐसे में सरकार को इंटरनेट की सुविधा मुफ्त या न्यूनतम मूल्य पर मुहैया कराने पर विचार करना चाहिए. तभी डिजिटल इंडिया की तरफ लिया गया यह ठोस और कारगर कदम साबित हो सकता है.
-अमित कुमार, ई-मेल से