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भरोसे की बहाली

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में विवादों और तनावों के हल के लिए बातचीत को सबसे बेहतर तरीका माना जाता है. इसकी एक मिसाल नेपाल के प्रधानमंत्री ओपी शर्मा ओली की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात है. पिछले वर्ष के मध्य में नेपाल के प्रथम पूर्ण संविधान के कतिपय प्रावधानों तथा 20 सितंबर को […]

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में विवादों और तनावों के हल के लिए बातचीत को सबसे बेहतर तरीका माना जाता है. इसकी एक मिसाल नेपाल के प्रधानमंत्री ओपी शर्मा ओली की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात है.
पिछले वर्ष के मध्य में नेपाल के प्रथम पूर्ण संविधान के कतिपय प्रावधानों तथा 20 सितंबर को उसके लागू होने के बाद से मधेसी समुदाय के असंतोष को लेकर दोनों देशों के पुराने संबंध बिखरने लगे थे. नेपाल ने भारत पर उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने, हिंसा उकसाने तथा आर्थिक नाकेबंदी का आरोप लगाया था. इस वर्ष 23 जनवरी को संविधान में संशोधन और पांच फरवरी को मधेसी समुदाय द्वारा आंदोलन वापस लेने के बाद इस यात्रा का संयोग बन सका. ओली ने बतौर प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा के रूप में भारत आकर यह भरोसा दिलाया कि दोनों देशों के संबंध फिर से पहले की तरह हो सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी नेपाल के संविधान और सरकार की कोशिशों की सराहना की है. नेपाली प्रधानमंत्री ने भारत से नेपाल के आर्थिक विकास में सहयोग देने का निवेदन किया है, तो भारतीय प्रधानमंत्री ने दक्षिण एशिया में परस्पर सहयोग की जरूरत पर बल दिया है. नेपाल में सभी समुदायों के हितों और अधिकारों की रक्षा करने का ओली का आश्वासन निश्चित रूप से भारत के लिए संतोषजनक है. नेपाल की आशंकाओं को दूर करते हुए भारत ने सभी पड़ोसी देशों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और सम्मान के महत्व को रेखांकित किया है. प्रधानमंत्री ओली ने कहा है कि इस यात्रा का लक्ष्य गलतफहमियों को दूर करना है.
दोनों देशों के बीच हुए सात समझौते संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में ठोस कदम हैं. लेकिन, पिछले कुछ महीने में बनी तनातनी के कारण दोनों देशों के नागरिकों में जो भावनाएं पैदा हुई हैं, उनका दबाव दोनों सरकार पर कुछ समय के लिए बना रह सकता है. इसके लिए दोनों पक्षों को लगातार संवाद बनाये रखना होगा. यह पहलू इस कारण बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि नेपाल-भारत संबंधों का मूलाधार सांस्कृतिक संबंध हैं.
यदि यह भरोसा समुचित रूप से बहाल नहीं होगा, तो राजनीतिक और आर्थिक संबंध भी समस्याग्रस्त रह सकते हैं. बहरहाल, इस यात्रा को निश्चित तौर पर एक ठोस उपलब्धि माना जाना चाहिए. इस प्रक्रिया को आगे ले जाने की जिम्मेवारी दोनों देशों के नेतृत्व की है. ओली के दौरे से जो संकेत निकलते हैं, उनसे यह उम्मीद तो बनती ही है कि भरोसे की बहाली की दिशा में दोनों सरकारें गंभीरता से अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करेंगी.

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