रोजगार की दरकार
देश में बेरोजगारी की स्थिति पर नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन द्वारा जारी हालिया आंकड़े चिंता बढ़ानेवाले हैं. इसमें कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ी है, जबकि शहरी क्षेत्रों में रोजगार में मामूली वृद्धि हुई है. वर्ष 2004-05 में ग्रामीण बेरोजगारी की दर 1.6 फीसदी थी, जो 2011-12 में 1.7 फीसदी हो गयी. […]
देश में बेरोजगारी की स्थिति पर नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन द्वारा जारी हालिया आंकड़े चिंता बढ़ानेवाले हैं. इसमें कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ी है, जबकि शहरी क्षेत्रों में रोजगार में मामूली वृद्धि हुई है. वर्ष 2004-05 में ग्रामीण बेरोजगारी की दर 1.6 फीसदी थी, जो 2011-12 में 1.7 फीसदी हो गयी.
हालांकि, इसी अवधि में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 4.5 फीसदी से घट कर 3.4 फीसदी हो गयी है. यह भी उल्लेखनीय है कि ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 50 फीसदी लोग स्व-रोजगार में लगे हैं. एक अन्य महत्वपूर्ण सूचना यह है कि ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार में महिलाओं की भागीदारी 2004-05 से 2011-12 के बीच 12 से 14 फीसदी तक कम हुई है.
श्रम में महिलाओं की भागीदारी की श्रेणी में दुनिया के 131 देशों की सूची में भारत का स्थान 120वां है. विश्व बैंक के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसका कारण महिलाओं के लिए उपयुक्त अवसरों की कमी है. ग्रामीण भारत में रोजगार की कमी का एक बड़ा कारण लंबे समय से चल रहा कृषि संकट है. सर्वे ने यह भी रेखांकित किया है कि अल्पसंख्यक समुदायों में बेरोजगारी बढ़ रही है.
विशेषज्ञों का आकलन है कि पिछले तीन-चार सालों में रोजगार के अवसर न के बराबर बढ़े हैं और अर्थव्यवस्था में भी संतोषजनक सुधार नहीं हुआ है. ऐसे में बेरोजगारी का संकट गहरा ही हुआ है. सर्वे के आंकड़े पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की नीतियों पर सवाल हैं, लेकिन मौजूदा सरकार को इस सर्वे के विविध पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.
इसी कड़ी में विकास की प्राथमिकताओं पर भी गौर किया जाना चाहिए. अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए तथा ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए सरकार को नीतिगत समीक्षा करनी चाहिए, क्योंकि मौजूदा सरकार की मूलभूत आर्थिक नीतियां उन्हीं आधारों पर टिकी हैं, जिन पर पिछली सरकारें चल रही थीं. रोजगार के इच्छुक युवाओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. ग्रामीण आय और अवसरों में कमी के चलते लोग शहरों का रुख कर रहे हैं.
इस रुझान को नियंत्रित करने के लिए की जा रही कोशिशों में तेजी लाना होगा. रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, तो उत्पादन, आय और मांग बढ़ेगी. इन कारकों के अभाव का असर औद्योगिक और उपभोक्ता उत्पादन में कमी तथा खुदरा मुद्रास्फीति के बढ़ने में देखा जा सकता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार आम बजट में रोजगार बढ़ाने की दिशा कुछ ठोस नीतिगत पहल में करेगी.