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जय हो प्रभु!

रेल हमारे जीवन में अत्यधिक महत्त्व रखती है. समूचे देश में रेल की पटरियों का जाल-सा बिछा है. इन पटरियों पर नित्यकर्म से निवृत्त हुआ जा सकता है. पहले लोग खेतों और जंगलों में भी नित्यकर्म के लिए जाते थे, लेकिन जब से बिल्डिंगें बनाने के लिए खेतों और जंगलों की जमीनें अधिगृहीत कर ली […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 26, 2016 1:02 AM

रेल हमारे जीवन में अत्यधिक महत्त्व रखती है. समूचे देश में रेल की पटरियों का जाल-सा बिछा है. इन पटरियों पर नित्यकर्म से निवृत्त हुआ जा सकता है. पहले लोग खेतों और जंगलों में भी नित्यकर्म के लिए जाते थे, लेकिन जब से बिल्डिंगें बनाने के लिए खेतों और जंगलों की जमीनें अधिगृहीत कर ली गयीं और फिर खुले में शौच न कर घर में ही शौचालय बनवाने का अभियान छेड़ दिया गया, तब से पटरियां ही देश के लाखों बेघर लोगों का एकमात्र सहारा रह गयी हैं. रेल की पटरियों में फिश-प्लेटें भी होती हैं, जो उखाड़े जाने के काम आती हैं. रेल की पटरियों का एक उपयोग और भी है, उन पर रेलगाड़ियां चलती हैं, जिन्हें चलाते रहने के लिए ही हर साल बजट पेश किया जाता है.

आम जनता हर बजट में कुछ नयी रेलगाड़ियां चलाये जाने की घोषणा का इंतजार करती है. इससे बजट में नयेपन का छौंक लगता है और वह सोंधी-सोंधी गंध से महक उठता है. रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने भी चार तरह की नयी ट्रेनें चलाने की घोषणा की है. इनमें से एक है ‘तेजस’, जो 130 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलेगी. कैसे चलेगी, यह बात जब मंत्री महोदय को पता चलेगी, तब आपको भी बता दी जायेगी. ‘हमसफर’ नाम की नयी ट्रेन की घोषणा से यह न समझ लें कि उसमें आपको एक हमसफर भी कॉम्प्लीमेंटरी दिया जायेगा, हमसफर आपको अपने साथ खुद ही लाना होगा, फिर चाहे वह अपना हो या किसी और का. ‘उदय’ नाम की ट्रेन डबल डेकर होगी और ‘अंत्योदय’ नाम की ट्रेन पूरी तरह अनारक्षित. इससे प्रथम से लेकर अंतिम आदमी का उदय हो जायेगा और आरक्षण का मुद्दा भी नहीं उठेगा. हालांकि, वह पूरी तरह से खत्म नहीं होगा, क्योंकि महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा भी की गयी है. और कृपया यह भी न समझें कि इस तरह की ट्रेनें तो जनसेवा, जनसाधारण आदि नामों से पहले से चल रही हैं और उन्हीं को नाम बदल कर पेश किया जायेगा.

हर ट्रेन में बुजुर्गों के लिए 120 सीटें आरक्षित करने का भी प्रावधान किया गया है, जिससे यह समझने में कठिनाई हो सकती है कि अगर उनकी सीट खाली रही तो टीटीइ उसे किसी गैर-बुजुर्ग को भी बेच सकेगा या इसके लिए किसी बुजुर्ग को ही तलाशना पड़ेगा?

बजट में यह नहीं बताया गया कि पिछले वर्ष के बजट के कितने लक्ष्य पूरे कर लिये गये और अगले वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्य किस तरह पूरे किये जायेंगे? किसी तरह के आंकड़े भी नहीं पेश किये गये. इसीलिए पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने तो इसे उस स्कूली बच्चे के रिपोर्ट-कार्ड जैसा बताया है, जो फेल हो गया है और उसे अपने मां-बाप को नहीं दिखाना चाहता. यात्री-किराया और मालभाड़ा भी नहीं बढ़ाया गया, पर उन्हें बजट में ही बढ़ाने की मजबूरी भी कहां रह गयी है?

रेल-विश्वविद्यालय खोलने की बात भी कही गयी है, लेकिन बेहतर होता कि रेलें छात्रों को मौजूदा विश्वविद्यालयों तक ही समय पर पहुंचा दिया करतीं. रेलों की औसत गति 80 किमी प्रति घंटे तक कर देने की बात कही गयी है, जिसे सुन कर जाट हंस रहे होंगे और कह रहे होंगे कि बावली पूंछ, हम उन्हें चलने देंगे तब न! तीर्थ-स्थानों के लिए आस्था सर्किट ट्रेनें चलाने की बात भी कही गयी है, जिससे अनास्थावादियों को ऐतराज हो सकता है. इन सबको 2020 तक पूरी करने का आश्वासन दिया गया है, तब तक आप भी मेरे साथ दाल-रोटी खा पायें या न खा पायें, पर प्रभु के गुण अवश्य गायें और मिल कर बोलें- जय हो प्रभु!

डॉ सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

drsureshkant@gmail.com

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