खतरनाक राजनीति

पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम द्वारा अफजल गुरु की सजा पर सवाल उठाने के मसले को उनकी व्यक्तिगत राय मान कर देखना सही नहीं होगा. संसद पर हुए आतंकी हमले की लंबी जांच और कानूनी प्रक्रिया के बाद अफजल गुरु को सर्वोच्च न्यायालय ने फांसी की सजा सुनायी थी. सरकार की रजामंदी से राष्ट्रपति ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 29, 2016 6:18 AM
पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम द्वारा अफजल गुरु की सजा पर सवाल उठाने के मसले को उनकी व्यक्तिगत राय मान कर देखना सही नहीं होगा. संसद पर हुए आतंकी हमले की लंबी जांच और कानूनी प्रक्रिया के बाद अफजल गुरु को सर्वोच्च न्यायालय ने फांसी की सजा सुनायी थी. सरकार की रजामंदी से राष्ट्रपति ने भी उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया था.
पी चिदंबरम उस सरकार के वरिष्ठ मंत्री ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने गृह मंत्री के रूप में संसद हमले की जांच प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभायी थी.
पूर्व गृह सचिव और सांसद आरके सिंह ने अपने बयान में स्पष्ट तौर पर कहा है कि गृह मंत्री के रूप में न तो पी चिदंबरम ने और न ही सुशील कुमार शिंदे ने कभी संसद हमले के षड्यंत्र में अफजल गुरु के शामिल होने पर कोई संदेह व्यक्त किया था. फांसी जैसी सजा के अंतिम निर्णय में सरकार और उसके राजनीतिक नेतृत्व की बड़ी भूमिका होती है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर आज चिदंबरम अफजल गुरु के हमले में शामिल होने को लेकर संशय में क्यों हैं! देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को लेकर राजनीतिक पूर्वाग्रह और लापरवाह रवैये के कारण देश पहले ही बहुत कुछ भुगत चुका है.
पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई ने हालिया बयान में कहा है कि इशरत जहां के लश्करे-तैयबा से संबंध को लेकर सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में पेश हलफनामे को चिदंबरम के निर्देश पर बदल दिया गया था. इशरत जहां के कथित मुठभेड़ में मारे जाने को लेकर कांग्रेस और भाजपा में लंबे समय से आरोप-प्रत्यारोपों का दौर चला आ रहा है. पिल्लई ने साफ कहा है कि वह मुठभेड़ केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत इंटेलिजेंस ब्यूरो की कार्रवाई थी, न कि गुजरात पुलिस की. इसका मतलब है कि इस कार्रवाई को गृह मंत्रालय की मंजूरी हासिल थी.
ऐसा कैसे हो सकता है कि आप सरकार में रहें, तो अफजल गुरु की सजा पर अपनी मुहर लगायें, और सरकार से हटते ही उस पर सवाल खड़े करने लगें! इंटेलिजेंस ब्यूरो की कार्रवाई को सही ठहराते हुए आप हलफनामा दें, और फिर राजनीतिक कारणों से उसे संशोधित कर दें! इसके बावजूद अगर कांग्रेस और चिदंबरम अपने संदेहों को लेकर गंभीर हैं, तो उसे अपनी मंशा स्पष्ट करनी चाहिए और संबंधित जानकारियां देश के सामने पेश करनी चाहिए. सुरक्षा से जुड़े मामलों पर देश में भ्रम फैलाना और लोगों को गुमराह करना सही राजनीति नहीं है.

Next Article

Exit mobile version