सवालों में चिदंबरम

लोक की नजर में किसी राजनेता की छवि उसकी विद्वता से ज्यादा उसके चरित्र से बनती-बिगड़ती है. लेकिन, यह भारतीय राजनीति की विडंबना ही है कि वित्तीय मामलों में भरपूर योग्यता का परिचय दे चुके पी चिदंबरम वित्तीय अनियमितता को लेकर भी निशाने पर आते रहे हैं. उन पर वित्त मंत्री रहते हुए टूजी स्पेक्ट्रम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 3, 2016 12:12 AM

लोक की नजर में किसी राजनेता की छवि उसकी विद्वता से ज्यादा उसके चरित्र से बनती-बिगड़ती है. लेकिन, यह भारतीय राजनीति की विडंबना ही है कि वित्तीय मामलों में भरपूर योग्यता का परिचय दे चुके पी चिदंबरम वित्तीय अनियमितता को लेकर भी निशाने पर आते रहे हैं.

उन पर वित्त मंत्री रहते हुए टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन में हुए घोटाले को रोकने में नाकाम रहने के आरोप भी लग चुके हैं. लेकिन, 2012 में लगे एक टेलीकॉम कंपनी को फायदा पहुंचाने के आरोपों की काली छाया अब कुछ नये तथ्यों के साथ फिर से संसद में हंगामे की वजह बन रही है. एक अंगरेजी अखबार ने खबर छापी है कि इडी और आयकर विभाग की अन्वेषण शाखा ने एयरसेल-मैक्सिस घोटाले के सिलसिले में पिछले दिनों चिदंबरम के बेटे कार्ति के आवास व दफ्तरों में छापे मारे.

इस दौरान बरामद दस्तावेजों से पता चला है कि चिदंबरम के बेटे कार्ति ने 2006 से 2014 के बीच सिंगापुर, दुबई, मलयेशिया, इंगलैंड, अमेरिका सहित 14 देशों में रीयल एस्टेट और कई अन्य तरह के कारोबार में बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया है. जाहिर है, यदि इन आरोपों में सच्चाई है, तो यह बेहद गंभीर मामला है और चिदंबरम की छवि की आड़ में इन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता.

यह तथ्य अपनी जगह है कि देश के शीर्ष नेताओं में शुमार चिदंबरम अपनी योग्यता और उपलब्धियों के दम पर कभी प्रधानमंत्री पद के दावेदार तक माने गये. हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए करने के बाद वे चाहते तो अपने नाना और पिता की तरह एक संपन्न बैंकर या व्यावसायी बनने का आसान रास्ता चुन सकते थे,

लेकिन व्यापारिक पृष्ठभूमि से अलग पहचान कायम करने की धुन में चिंदबरम ने पहले वामपंथी तेवर की पत्रकारिता को चुना और ‘रेडिकल रिव्यू’ नाम का जर्नल निकाला, फिर वकालत को अपना पेशा बनाया. 1984 में पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित होनेवाले चिदंबरम ने तकरीबन तीन दशक के अपने राजनीतिक कैरियर में यों तो गृह मंत्रालय समेत कई मंत्रालयों का पदभार संभाला, परंतु उनकी वास्तविक ख्याति वित्तमंत्री के रूप में है.

वित्तीय मामलों में उन्हें सिद्धहस्त पाकर ही अलग-अलग प्रधानमंत्रियों ने उन पर वित्तमंत्री के रूप में भरोसा जताया. एक से ज्यादा दफे वित्तमंत्री का पदभार संभालते हुए चिंदबरम ने देश में नया वित्तीय ढांचा खड़ा करने के मामले में सूझबूझ और साहस का परिचय दिया है. एक बार अगर वित्तीय घाटा रोकने के लिए कर-सुधारों को लेकर उन्होंने प्रशंसनीय पहलकदमी की, तो दूसरी बार 2008 में किसानों की कर्जमाफी का साहस भरा फैसला लिया.

उनकी इस योजना के बारे में आज विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि इससे देश की अर्थव्यवस्था की कुल मांग में वृद्धि हुई और मंदी के हालात से उबरने में मदद मिली.

लेकिन, 2012 में उनकी यह छवि सवालों के घेरे में आ गयी, जब अरुण जेटली ने तत्कालीन गृह मंत्री चिदंबरम पर वित्तीय गड़बड़ी के आरोप लगाये थे. इसमें कहा गया था कि 2006 में वित्त मंत्री रहते हुए चिदंबरम के पास एयरसेल के मालिकाना हक का मामला अटका था. मार्च, 2006 में चिदंबरम ने एक मलयेशियाई कंपनी मैक्सिस को एयरसेल में विदेशी निवेश की इजाजत दी थी. इससे पहले चिदंबरम के एक रिश्तेदार की कंसल्टिंग फर्म ने एयरसेल को एक राशि अदा की और फिर मैक्सिस के निवेश से पहले एयरसेल का मालिकाना हक बदल दिया गया. करीब 4000 करोड़ रुपये का एयरसेल-मैक्सिस सौदा टूजी घोटाले के तहत जांच के दायरे में है और सुप्रीम कोर्ट इसकी निगरानी कर रहा है. इससे संबंधित सीबीआइ की चार्जशीट में पूर्व केंद्रीय मंत्री दयानिधि मारन और कलानिधि मारन बंधुओं पर भी अरबों रुपयेे रिश्वत लेने का आरोप है.

अब जबकि चिदंबरम के बेटे द्वारा अर्जित की गयी अकूत संपत्ति की खबर सामने आयी है, एयरसेल-मैक्सिस डील में चिदंबरम की भूमिका और उनके बेटे द्वारा देश-विदेश में अर्जित संपत्ति पर चर्चा की मांग को लेकर एआइएडीएमके सांसद नारेबाजी कर रहे हैं, जिन्हें सत्ता पक्ष का भी साथ मिल रहा है.

ऐसे समय में, जबकि कांग्रेस को चिदंबरम पर लगे गंभीर आरोपों की सच्चाई जल्द सामने लाने में मददगार होना चाहिए था, वह कुछ दूसरे मामले उठा कर पलटवार का प्रयास कर रही है. चिदंबरम पर लगे आरोपों को सिर्फ यह कह कर टाला नहीं जा सकता कि सबकुछ अदालत में स्पष्ट होगा या फिर कानून अपने हिसाब से काम करेगा.

राजनीति बड़े हद तक किसी घटना या व्यक्ति के बारे में बनी धारणाओं का खेल है, और ठीक इसी कारण, आरोप चाहे हल्के हों या संगीन, राजनीतिक दल और राजनेताओं को चाहिए कि वे लोगों के मन में उठती आशंकाओं को दूर करने के लिए ठोस तथ्यों के साथ अपना पक्ष जल्दी-से-जल्दी स्पष्ट करें. साथ ही सरकार के पास यदि चिदंबरम या उनके बेटे के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं के ठोस सबूत हैं,

कानून के दायरे में त्वरित एवं कड़ी कार्रवाई के सुनिश्चित की जानी चाहिए. फिलहाल, बयानों और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों के इस खेल में जो बातें लोगों के सामने आ रही हैं, वे आधी-अधूरी और अधपकी होने के बावजूद भारतीय राजनीति में शीर्ष स्तर पर जारी भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के स्याह पक्ष की तरफ इशारा कर रही हैं. इसलिए इस मामले के पूरे सच से परदा जल्द से जल्द उठना चाहिए.

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