एक चिट्ठी ने बिगाड़ दी जिंदगी

अनुज कुमार सिन्हा वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर एक चिट्ठी अगर किसी की जिंदगी बना सकती है, ताे किसी की जिंदगी तबाह भी कर सकती है. दिल्ली में शादी के लगभग तीन साल बाद एक महिला ने गुस्से में विदेश में रहनेवाले अपने पति काे जाे चिट्ठी लिखी थी, वही चिट्ठी उसके गले की हड्डी बन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 3, 2016 12:14 AM

अनुज कुमार सिन्हा

वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
एक चिट्ठी अगर किसी की जिंदगी बना सकती है, ताे किसी की जिंदगी तबाह भी कर सकती है. दिल्ली में शादी के लगभग तीन साल बाद एक महिला ने गुस्से में विदेश में रहनेवाले अपने पति काे जाे चिट्ठी लिखी थी, वही चिट्ठी उसके गले की हड्डी बन गयी. पत्नी तलाक चाहती थी. दाेनाें पति-पत्नी 28 साल से अलग रह रहे हैं. अब मामला दिल्ली हाइकाेर्ट में है.
साल 1987 में एक युवती की शादी हुई. एक बेटे का जन्म हुआ. इस बीच पति अमेरिका में नाैकरी करने चला गया. साथ नहीं ले गया. महिला अधीर हाे उठी आैर उसने 1990 में पति काे एक चिट्ठी लिखी-‘मैं आपसे तलाक चाहती हूं. मुझे एक पुराना दाेस्त मिल गया है. वह मुझे आैर मेरे बेटे काे अपनाने काे तैयार है.
मैं उससे शादी करना चाहती हूं.’ चिट्ठी पढ़ कर पति दुखी हुआ. मामला अदालत पहुंचा. 1995 में जब केस की सुनवाई आरंभ हुई, ताे महिला काे एहसास हुआ कि उसने बड़ी गलती कर दी है. उसने अदालत में बयान दिया कि वह पति के साथ रहना चाहती थी. पति नहीं ले जा रहे थे, इसलिए उन्हें डराने-धमकाने की नीयत से उसने ऐसी चिट्ठी लिखी थी. यह मामला दिल्ली हाइकाेर्ट तक पहुंच गया. वहां महिला यह कहती रही कि आवेश में आकर उसने यह पत्र लिखा था, उसने झूठ बाेला था, अब वह साथ रहना चाहती है,
लेकिन अदालत की टिप्पणी थी- आपकी यह करतूत क्रूरता वाली है. पति चार-पांच साल तक भारी मानसिक पीड़ा में रहा.
यह सामान्य घटना नहीं है. एक पत्र ने पति आैर पत्नी दाेनाें का जीवन बिगाड़ दिया. 28 साल से दाेनाें अलग हैं. भारतीय समाज ऐसे अधीरता वाले निर्णय के लिए नहीं जाना जाता है. यह वह देश है, जहां यह माना जाता है कि जाेड़ियां ईश्वर बनाते हैं,
उसे नहीं ताेड़ा जाये. यही भारतीय समाज की ताकत भी है. एक बार शादी के बंधन में बंध गये ताे उसे निभाते भी हैं. यह सात जन्म का बंधन माना जाता है. भारत ही वह देश है, जहां लाेग शादी की 25वीं, 50वीं, 60वीं अाैर 75वीं वर्षगांठ भी मनाते हैं. दुनिया के कई देशाें से शाेध छात्र भारत आते हैं आैर इस विषय पर शाेध करते हैं कि भारत में काैन-सी ताकत है, जिसके बल पर शादियां इतनी सफल हाेती हैं आैर पति-पत्नी आजीवन साथ रहते हैं.
दरअसल, वह ताकत है एक-दूसरे के प्रति अटूट विश्वास आैर खराब समय में भी साथ नहीं छाेड़ने के संकल्प की. संयुक्त परिवार (जाे अब टूट रहा है) की ताकत, उसके गुण, बड़ाें का सम्मान. बड़े-बुजुर्गों का निर्णय परिवार में अंतिम माना जाता है. रिश्ते काे निभाने के लिए अंतिम समय तक प्रयास किया जाता है.
आदिकाल से यही हाेता रहा है, लेकिन बदलती दुनिया का असर अब यहां भी पड़ रहा है. अांकड़े गवाह हैं. दस साल पहले तक भारत में हजार शादियाें में सिर्फ एक शादी टूटती थी, अब यह बढ़ कर 13 तक पहुंच गयी है. फिर भी खतरनाक स्थिति नहीं आयी है. जिस अमेरिका का भारत पर सबसे ज्यादा असर दिखता है, वहां हर हजार शादियाें में पांच साै शादियां टूटती हैं.
भारतीय समाज पर पाश्चात्य देशाें का असर पड़ा है. सहनशीलता खत्म हाेती जा रही है. दाेनाें तरफ से. दरअसल, पैसाें का महत्व बढ़ गया है. पति-पत्नी दाेनाें कमाना चाहते हैं, ऐसे में एक-दूसरे काे समय नहीं दे पाते. संयुक्त परिवार टूट रहा है आैर अब हर शादी के बाद एक अलग घर बसने लगा है. कभी मजबूरी में ताे कभी दबाव में. आपसी विवाद काे सुलझाने में बड़ी भूमिका निभानेवाले माता-पिता अब पैतृक घराें तक सिमट गये हैं. लड़कियां भी पढ़ाई-नाैकरी में किसी से पीछे नहीं हैं.
आत्मनिर्भर हाे रही हैं. ऐसे में अनावश्यक दबाव झेलने के लिए वे तैयार नहीं हैं. यही कारण है कि अब संबंधाें में टकराहट बढ़ी है.
इस बात काे लाेग (चाहे वह पति हाे या पत्नी) भूल रहे हैं कि एक बार रिश्ते बिगड़ गये, फिर उन्हें पटरी पर लाना आसान नहीं हाेता. उक्त महिला के साथ भी यही हाे रहा है.
एक छाेटी-सी भूल ने उसकी जिंदगी तबाह कर दी. देश में अब फैमिली काेर्ट में आपसी विवाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन काे बेहतरीन बनाने, तनावरहित बनाने का फाॅर्मूला भारतीय परिवार, भारतीय समाज के भीतर ही है. संबंधाें की संवेदनशीलता काे समझना हाेगा, दुनिया की चकाचाैंध के चक्कर में पड़ने से बेहतर है,
चैन आैर शांति की जिंदगी. बेहतर हाेगा कि बच्चाें में इतने गहरे संस्कार (जाे भारतीय संस्कृति में कूट-कूट कर भरा है) दिये जायें, ताकि परिवार एक रहे, खुशहाल रहे, सम्मान की परंपरा आगे बढ़े, विश्वास में कमी न आये आैर अलग हाेने की नाैबत ही न आये.

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