इंडिया नहीं, भारत का बजट

अनुपम त्रिवेदी राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक मोदी सरकार के तीसरे बजट पर मध्यम-वर्ग की प्रतिक्रिया तीखी रही है. न आयकर छूट की सीमा में बढ़ोत्तरी हुई, न बढ़ते दामों से राहत मिली, बल्कि सेवाकर में बढ़ोत्तरी ने एनडीए सरकार के सबसे बड़े समर्थक मिडिल क्लास को जैसे विपक्षी दलों के साथ ले जाकर खड़ा कर दिया है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 3, 2016 12:22 AM

अनुपम त्रिवेदी

राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक
मोदी सरकार के तीसरे बजट पर मध्यम-वर्ग की प्रतिक्रिया तीखी रही है. न आयकर छूट की सीमा में बढ़ोत्तरी हुई, न बढ़ते दामों से राहत मिली, बल्कि सेवाकर में बढ़ोत्तरी ने एनडीए सरकार के सबसे बड़े समर्थक मिडिल क्लास को जैसे विपक्षी दलों के साथ ले जाकर खड़ा कर दिया है. महंगी कारें, महंगा सोना, महंगे होटल और कर्मचारी भविष्य निधि (इपीएफ) की निकासी पर लगाये गये कर से चमकती इंडिया का मिडिल क्लास गुस्से में है. सोशल मीडिया पर बखूबी इस गुस्से का इजहार भी हुआ है.
वहीं देश का एक बड़ा वर्ग और अर्थशास्त्री इस बजट को सराह रहे हैं. बजट के दूसरे दिन ज्यादातर अखबारों की सुर्खियां भी मध्यम-वर्ग के गुस्से से परे अलग ही कहानी कहती हैं. ‘नमो, ग्राम देवता’, ‘किसानों, गरीबों का बजट’, ‘अबकी बार, गांव चली सरकार’, ‘मेरा गांव, मेरा देश’, ‘सशक्त भारत, समृद्ध भारत’ जैसी हेडलाइंस संकेत कर रही हैं कि इस बार का बजट इंडिया का नहीं, भारत का है. वह भारत, जिसकी 70 प्रतिशत आबादी अभी भी गांवों में बसती है. मोदी सरकार का यह बजट संभवतः आजादी के बाद का पहला बजट है, जिसे पूरी तरह से किसानों को विकास के केंद्र में रख कर बनाया गया है.
दरअसल 7.3 प्रतिशत की विकास दर से बढ़ते, चमकते इंडिया के सामने गांवों में बसते भारत का सच ऐसा सच है, जिसे हम जानते हुए भी नकारते हैं. देश में हर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बदलाव हुआ है, पर कृषि की हालत जस-की-तस है. आज भी हमारी 49 प्रतिशत आबादी खेती पर आश्रित है, पर देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी मात्र 19 प्रतिशत है. इसका अर्थ है, बहुत ज्यादा लोग बहुत कम कमा रहे हैं. इसी की परिणति हमें कम प्रति व्यक्ति आय और गरीबी में दिखाई देती है.
आबादी के दबाव में कृषि-योग्य भूमि घटती जा रही है. 90 प्रतिशत किसानों के पास 2 हेक्टयर से कम जोत है. कम भूमि पर कृषि लाभकारी नहीं होती, ऊपर से हमारे यहां उत्पादकता चीन की तुलना में बहुत कम है. उदाहरण के लिए भारत में प्रति हेक्टेयर धान का उत्पादन 3,590 किलो है, वहीं चीन में यह उत्पादन 6,686 किलो है. कम उत्पादकता का बड़ा कारण है सिंचाई के साधनों का अभाव. देश की कुल जोत का सिर्फ एक तिहाई ही सिंचित है, बाकी सब भगवान भरोसे है.
लगातार बीते दो साल के सूखे ने किसानों की कमर तोड़ दी है. देश के 302 जिले सूखा पीड़ित हैं. उस पर भी, जो कुछ भी पैदा होता है, उसका लाभ बिचौलिये ले जाते हैं.
बढ़ती लागत, बढ़ती आबादी, मौसम की मार से बरबाद होती फसल, घटती आमदनी और महंगाई, इन सबने हमारे अन्नदाता की कमर तोड़ के रख दी है. कृषि-आश्रित परिवारों में से आधे से ज्यादा कर्ज में डूबे हैं. देश के हर किसान पर औसत 47 हजार रुपये का कर्ज है. सूदखोरों के चंगुल में फंसे हमारे मजबूर किसान मौत में राहत तलाश रहे हैं. देश में औसतन 46 किसान रोज आत्महत्या कर रहे हैं.
बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में कृषि उत्पादन नहीं बढ़ रहा है. घटती जमीन, मरते किसान और वैश्विक जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ती ‘भूख’ अवश्यंभावी है. यह ऐसी संभावना है, जो बढ़ते इंडिया की चमक फीकी कर सकती है. ऐसे में मोदी सरकार का तीसरा बजट आशा की एक किरण लेकर आया है.
वित्त मंत्री ने बजट में किसानों के लिए देश का खजाना खोल दिया है. कृषि और संबंधित क्षेत्र में भारी आवंटन की घोषणा की है. इसमें 35,984 करोड़ रुपये किसान कल्याण और 86,500 करोड़ रुपये सिंचाई सुविधाओं के लिए हैं. ग्रामीण विकास और पेयजल के लिए 1,01,775 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. साल 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है. मौसम की मार से जूझते किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का सहारा दिया गया है
तथा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को एक मिशन का दर्जा मिला है. नाबार्ड द्वारा 20,000 करोड़ रुपये का सिंचाई फंड बनाया गया है. कृषि ऋण पर ब्याज छूट के लिए 15,000 करोड़ रुपये व नयी फसल बीमा के लिए 5,500 रुपये करोड़ का आवंटन किया गया है.
गांवों में कर्ज की सबसे बड़ी वजह है, हारी-बीमारी से लड़ने की विवशता. गरीबी के चलते बड़ी संख्या में बच्चे और महिलाएं कुपोषण के शिकार हैं. सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा के कारण महंगे निजी अस्पतालों में इलाज एक विवशता बन गयी है. बजट में प्रस्तावित एक लाख का स्वास्थ्य बीमा, तीन हजार जन-औषधि केंद्रों की स्थापना, राष्ट्रीय डाइलिसिस सेवा कार्यक्रम की शुरुआत इस दिशा में सुधार के सार्थक कदम हैं.
छोटे व्यापारियों के लिए शुरू की गयी ‘मुद्रा योजना’ का आवंटन लक्ष्य बढ़ा कर 1,80,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है. किसानों की आय बढ़ाने और बिचौलियों से उन्हें बचाने के लिए एकीकृत कृषि बाजार के इ-प्लेटफॉर्म की स्थापना की जा रही है. देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए इसे 5 करोड़ एकड़ भूमि में करने का लक्ष्य रखा गया है.
मनरेगा को प्रधानमंत्री मोदी ने यूपीए की नाकामी की मिसाल कहा था, पर इसके लिए बजट आवंटन में वृद्धि- अब तक की सर्वाधिक 38,500 करोड़ रुपये- और कार्य का विस्तार मोदी सरकार की परिपक्वता को दर्शाता है. भ्रष्टाचार से घिरी मनरेगा योजना की चाहे कितनी भी बुराई क्यों न हो, सच यह भी है कि मनरेगा बड़ी संख्या में भूमिहीन मजदूरों के जीने का एक आसरा है. मनरेगा से गांवों में ढांचागत सुधार की पहल श्यामाप्रसाद मुखर्जी रुरबन मिशन और प्रधानमंत्री ग्राम-सड़क योजना के तहत की गयी है. गांवों के विकास के लिए 1 मई, 2018 तक सौ प्रतिशत ग्रामीण विद्युतीकरण का लक्ष्य रखा गया है.
लीक से हट कर बनाया गया मोदी सरकार का यह बजट इंडिया के मध्यम-वर्ग को भले ही न खुश कर पाया हो, लेकिन भारत के किसानों का इसने भरपूर ध्यान रखा है. इसीलिए, यह कहना उचित होगा कि यह इंडिया नहीं, भारत का बजट है.

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