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बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी

बिहार के कई इलाकों में आदिवासियों के खिलाफ प्रशासन की कथित एकतरफा कार्रवाइयों के गंभीर नतीजे हो सकते हैं. असर झारखंड पर भी पड़ना तय है. अधिक पुरानी बात नहीं है, जब पूर्णिया को कालापानी कहा जाता था. भौगोलिक परिस्थितियों व सुविधाओं के अभाव में पूरे इलाके में लोग बसने को तैयार नहीं थे. ऐसे […]

बिहार के कई इलाकों में आदिवासियों के खिलाफ प्रशासन की कथित एकतरफा कार्रवाइयों के गंभीर नतीजे हो सकते हैं. असर झारखंड पर भी पड़ना तय है. अधिक पुरानी बात नहीं है, जब पूर्णिया को कालापानी कहा जाता था. भौगोलिक परिस्थितियों व सुविधाओं के अभाव में पूरे इलाके में लोग बसने को तैयार नहीं थे. ऐसे में संताली आदिवासियों ने इलाके को रहने योग्य बनाया.

अब उन्हीं को विस्थापित करने की कोशिश हो रही है. आरोप है कि प्रशासन की ओर से भी इन्हें जुबानी संरक्षण देने के अलावा कुछ खास नहीं किया जा रहा है. इस साल अब तक आदिवासियों के खिलाफ एक दर्जन से भी ज्यादा उत्पीड़न के मामले दर्ज हो चुके हैं. सभी मामलों के पीछे मूल कारण जमीन का ही है. दरअसल कल का कालापानी अब न केवल आबाद है, बल्कि जमीन बेशकीमती हो गयी है. सरकार को ऐसे मामलों की अनदेखी करने या लापरवाह अफसरों के खिलाफ सख्ती से पेश आने की जरूरत है.

समय रहते न्यायपूर्ण कार्रवाई सुनिश्चित करने की कोशिश तुरंत शुरू करनी चाहिए. वरना झारखंड में रहनेवाले बिहारियों के खिलाफ माहौल बनने में देर नहीं लगेगी. झारखंड के कई इलाकों को खुशहाल बनाने में बिहारियों का योगदान रहा है. रोटी-बेटी का पुराना रिश्ता रहा है. इसके बावजूद अगर यह संदेश जायेगा कि बिहार में आदिवासी पीड़ित व शोषित हो रहे हैं, तो झारखंड में इसकी प्रतिक्रिया दिखेगी. झारखंड में ‘दिकू’ को लेकर नफरत का बीज कभी भी पेड़ बन सकता है. ऐसे में अगर प्रांतवाद-क्षेत्रवाद के नाम पर होनेवाली कार्रवाई को लेकर सवाल उठेंगे, तो कौन सुनेगा?

अभी भाषा के सवाल पर झारखंड गरम है. ऐसे में दोनों ही राज्य सरकारों की यह जिम्मेवारी बनती है कि इस तरह के घोर संवेदनशील मुद्दों पर त्वरित व न्यायसंगत कार्रवाई हो. यह समझ पैदा करने की भी जरूरत है कि समय और परिस्थितियों के विपरीत होने के बावजूद किसी क्षेत्र विशेष को अपनी मेहनत से बेहतर बनानेवालों का हक सबसे पहले होता है. अगर, इस हक को छीनने या कम करने की कोशिश की जायेगी, तो इसके नतीजे खतरनाक ही होंगे और फिर समाज को एक रखने की तमाम कोशिशों पर पानी फिर जायेगा. बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी.

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