समलैंगिकों के साथ न्याय करे कानून

मनुष्य की परिभाषा यह है कि वह एक सामाजिक प्राणी है. वह अकेला नहीं रह सकता. उसे परिवार व समाज की आवश्यकता पड़ती है. पर समलैंगिक लोगों को ना तो उनका परिवार अपनाता है और न ही समाज. और अब कानून भी ऐसे लोगों को अकेलेपन के अंधकार में धकेल रहा है. 2009 में हाइकोर्ट […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 21, 2013 3:50 AM

मनुष्य की परिभाषा यह है कि वह एक सामाजिक प्राणी है. वह अकेला नहीं रह सकता. उसे परिवार व समाज की आवश्यकता पड़ती है. पर समलैंगिक लोगों को ना तो उनका परिवार अपनाता है और न ही समाज. और अब कानून भी ऐसे लोगों को अकेलेपन के अंधकार में धकेल रहा है. 2009 में हाइकोर्ट ने वैज्ञानिक तर्क पर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था.

ऐसे लोगों को हर जगह इज्जत के साथ खुल कर जीने की आजादी मिली. किसी इनसान का समलैंगिक होना प्रकृति की देन है. फिर कानून इसे अपराध क्यों मान रहा है? समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में डाल कर कानून ने ऐसे लोगों पर कोड़े बरसाने का काम किया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर संभावना जीवित रखी है कि धारा 377 को हटाने के लिए संसद अधिकृत है.
चंदा साह, देवघर

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