मसीही विश्वासियों से एक अनुरोध

आज हम ही को हम ही से शिकायत है. 25 दिसंबर को सरना भाई-बहन एक बृहत जमात के साथ लाल पाड़ वाली साड़ी में मरियम को लेकर आप ईसाई भाई-बहनों के पास शिकायत पेश करने आ रहे हैं. वह भी पूर्व में आप के द्वारा अवमानना की बदौलत. क्या यह हमारे बीच सांप्रदायिक सौहार्द का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 21, 2013 3:52 AM

आज हम ही को हम ही से शिकायत है. 25 दिसंबर को सरना भाई-बहन एक बृहत जमात के साथ लाल पाड़ वाली साड़ी में मरियम को लेकर आप ईसाई भाई-बहनों के पास शिकायत पेश करने आ रहे हैं. वह भी पूर्व में आप के द्वारा अवमानना की बदौलत. क्या यह हमारे बीच सांप्रदायिक सौहार्द का बिगाड़ नहीं है? बिगाड़ तो पिछली बार भी होने-होने को था, पर पुलिस-प्रशासन की कामयाबी रही. इस बार कुछ अनहोनी हो जाए तो इसकी जवाबदेही किसकी होगी, सरना समुदाय की या ईसाई समुदाय की?

देश, राज्य में धार्मिक उन्माद फैलानेवाली कई घटनाएं घटीं, पर सबको भुला कर आज शांति है. लेकिन कितनी शर्म की बात है कि अब आपकी बदौलत रांची अशांत होने जा रही है? माननीय कार्डिनल टोप्पो परंपरा की बात करते नहीं थकते हैं. पर कैसी और कहां की परंपरा? झारखंडी परंपरा या वैटिकन परंपरा? जहां तक लाल पाड़ वाली साड़ी के हक -हकीकत की बात है, तो क्या आपके पास उस पर हक जताने का कोई जमीनी अधिकार है?

विद्वान कार्डिनल को शायद यह मालूम नहीं कि ज्ञान-संज्ञान के संदर्भ में धर्म-कर्म, रीति-रिवाज, खान-पान, जन्म-मरण, कला-संस्कृति, आदि से प्रभावित कायदे-कानून किसी व्यक्ति विशेष, समाज विशेष को एक खास संस्कार में ढालते हैं, न कि किसी व्यक्ति या समाज को दूसरों के संस्कारों के अतिक्रमण, तोड़क, निंदक के रूप में उभारते हैं. लाल पाड़ की साड़ी एवं करेया सरना समुदाय के लोक-परिचित पुरखा वस्त्र हैं. बहरहाल, आज हमारी स्थिति यह है कि बगिया के बाघ को मारो तो फूल झड़ जाए और न मारो तो माली पर ही दांत गड़ा दे. इसलिए ईसाई मत के विद्वानों से अनुरोध है कि हालात पर काबू पाने की कोशिश करें.
मंगल सिंह मुंडा, तिरला, खूंटी

Next Article

Exit mobile version