राजभवन की दीवारें, आकाशवाणी की स्वरलहरी और गुरुद्वारे की सीढ़ियां, सबने खामोश नजरों से मेरी दुर्दशा देखी है़ राह चलते किसी गड्ढे से आती सड़ांध से मुंह मत फेरना, यह घाव मुझे अपनों ने ही दिये हैं. आसमान में उड़ने वालों, कभी जमीन पर उतर कर देखो, तरक्की को राह देने वाला ‘राजमार्ग’ खुद कितना पीछे रह गया़
मैं रातू रोड हूं
पुरानी सड़कों की वह धरोहर, जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग का हिस्सा होने का गौरव प्राप्त है, अपनी बेबसी पर रोना मेरी मजबूरी है़ मैं रांची का रातू रोड हूं. यहां चलना तो दूर, रेंगना भी आसान नहीं. सूबे में न तो योजनाओं की कमी रही, न ही धन की़ लेकिन, मैं वैसे का वैसा ही हूं. […]
पुरानी सड़कों की वह धरोहर, जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग का हिस्सा होने का गौरव प्राप्त है, अपनी बेबसी पर रोना मेरी मजबूरी है़ मैं रांची का रातू रोड हूं. यहां चलना तो दूर, रेंगना भी आसान नहीं. सूबे में न तो योजनाओं की कमी रही, न ही धन की़ लेकिन, मैं वैसे का वैसा ही हूं.
एमके मिश्रा, रांची
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