विज्ञान में महिलाएं
हमारे राष्ट्रीय जीवन का शायद ही कोई हिस्सा ऐसा है, जहां महिलाओं की उपस्थिति नहीं है. लेकिन, पुरुषों की तुलना में उनकी संख्या न सिर्फ कम है, बल्कि सामाजिक व्यवस्था में जिन बाधाओं का उन्हें सामना करना पड़ता है, वे अवरोध पेशेवर जीवन में भी रास्ता बाधित करते हैं. वैज्ञानिक शोध एवं अनुसंधान ऐसा ही […]
हमारे राष्ट्रीय जीवन का शायद ही कोई हिस्सा ऐसा है, जहां महिलाओं की उपस्थिति नहीं है. लेकिन, पुरुषों की तुलना में उनकी संख्या न सिर्फ कम है, बल्कि सामाजिक व्यवस्था में जिन बाधाओं का उन्हें सामना करना पड़ता है, वे अवरोध पेशेवर जीवन में भी रास्ता बाधित करते हैं. वैज्ञानिक शोध एवं अनुसंधान ऐसा ही एक क्षेत्र है, जिसमें महिलाओं के उत्कृष्ट योगदान और क्षमता के बावजूद उन्हें समुचित प्रोत्साहन और अवसर नहीं मिल रहे हैं.
उन्नीसवीं सदी में चिकित्सक आनंदीबाई जोशी से शुरू हुई यात्रा बीसवीं सदी में जानकी अम्माल, कमला सोहोनी, अण्णा मणि, असिमा चटर्जी, राजेश्वरी चटर्जी, दर्शन रंगनाथन, मंगला नार्लिकर जैसे अनेक वैज्ञानिकों के जरिये मौजूदा सदी में यमुना कृष्णन, शुभा तोले, प्रेरणा शर्मा, नीना गुप्ता आदि तक पहुंची है. ये सिर्फ नाम भर नहीं है. ये सिद्ध करते हैं कि गणित, विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में जटिल मीमांसाओं और सैद्धांतिकी की विकास प्रक्रिया में महिलाएं अप्रतिम योगदान कर सकती हैं. लेकिन, उच्च शिक्षा और शोध के स्तर पर महिलाओं की संख्या संतोषजनक नहीं है. विज्ञान से संबद्ध संस्थाओं में महिलाओं की मौजूदगी के मामले में भारत 69 देशों की सूची में लगभग सबसे निचले पायदान पर है.
विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ के ताजा सर्वेक्षण के अनुसार भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी में 2013 में कुल 864 सदस्यों में सिर्फ 52 महिलाएं थीं. वर्ष 2014 तक इस संस्थान के 31-सदस्यीय अधिशासी समिति में एक भी महिला सदस्य नहीं थी. भारत की तुलना में अमेरिका, स्विट्जरलैंड और स्वीडन में राष्ट्रीय अकादमी के शासन मंडल में 47 फीसदी महिलाएं हैं, क्यूबा, नीदरलैंड और ब्रिटेन में विज्ञान अकादमियों में 40 फीसदी से अधिक महिलाएं हैं.
स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि भारत में सरकारी विज्ञान संस्थाओं में सिर्फ एक संस्थान की प्रमुख महिला है. ऐसे में जरूरी है कि महिला सशक्तीकरण के प्रयास को तेज करते हुए विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया जाये तथा सामाजिक और सांस्थानिक भेदभावों एवं पूर्वाग्रहों को तिलांजलि दी जाये. महिलाओं की समुचित हिस्सेदारी और योगदान के बिना देश के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य को हासिल करना संभव नहीं है.