माल्या की घेराबंदी

देर आयद, दुरुस्त आयद’ की तर्ज पर आखिकार उन बैंकों ने उद्योगपति विजय माल्या को घेरने की कोशिश शुरू कर दी है, जिन्होंने किंगफिशर एयरलाइंस को सात हजार करोड़ रुपये का कर्ज दिया था. केंद्रीय जांच ब्यूरो पहले ही बैंकों की आलोचना कर चुका है कि उन्होंने शिकायत करने और इस मामले को धोखाधड़ी घोषित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 9, 2016 5:47 AM
देर आयद, दुरुस्त आयद’ की तर्ज पर आखिकार उन बैंकों ने उद्योगपति विजय माल्या को घेरने की कोशिश शुरू कर दी है, जिन्होंने किंगफिशर एयरलाइंस को सात हजार करोड़ रुपये का कर्ज दिया था.
केंद्रीय जांच ब्यूरो पहले ही बैंकों की आलोचना कर चुका है कि उन्होंने शिकायत करने और इस मामले को धोखाधड़ी घोषित करने में काफी देर की है. यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों ने माल्या के कारोबार का आकलन करने में लापरवाही बरती और मनमाने ढंग से कर्ज दिया.
बहरहाल, अब इतना तो कहा ही जा सकता है कि माल्या को अपनी करतूतों का हिसाब देना पड़ेगा. लेकिन, इस पूरे प्रकरण में जो सबसे गंभीर मुद्दा है, वह सार्वजनिक बैंकों के लचर रवैये से जुड़ा है. इस बात को सीबीआइ भी रेखांकित कर चुकी है. पिछले दिनों कर्ज में फंसी राशि और कामकाज से उपजे असंतोष को लेकर वित्त मंत्रालय ने शीर्षस्थ बैंक प्रबंधकों की खिंचाई की है तथा देश का धन गैरजिम्मेवार कारोबारियों पर लुटाने पर लगाम कसने का निर्देश दिया है.
कर्ज में डूबे धन का हिसाब चौंकानेवाला है. दिसंबर, 2009 में सार्वजनिक बैंकों की कुल फंसी हुई धनराशि (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) 54 हजार करोड़ से कुछ अधिक थी, जो अब चार लाख करोड़ से ऊपर हो चुकी है. इस धन की वसूली न हो पाने से बैंकों का वित्तीय स्वास्थ्य चिंताजनक है. इससे करदाताओं और आम लोगों में रोष भी है. इतना ही नहीं, बैंकों ने न सिर्फ वसूली की चिंता किये बिना कर्ज बांटे हैं, बल्कि लेनदारों के 1.14 लाख करोड़ रुपये माफ भी किये गये हैं.
जानबूझ कर कर्ज न चुकानेवालों और अन्य डिफॉल्टरों की सूची में अकेले विजय माल्या का ही नाम नहीं है, अनेक उद्योगपति ऐसे हैं जिन पर माल्या से काफी ज्यादा बकाया है. इनमें कुछ सांसद और पूर्व सांसद भी हैं. माल्या के मामले में वसूली के साथ यह भी कोशिश की जानी चाहिए कि उस प्रवृत्ति और प्रक्रिया का खुलासा हो जिससे देश की जनता के पैसे हड़प कर कुछ रसूखवाले लोग अरबपति बनते हैं.
इस संबंध में सरकार समेत समूचे राजनीतिक समूह को एक स्वर से ऐसे डिफॉल्टरों दंडित करने के प्रयास में अपना योगदान देना चाहिए. सार्वजनिक बैंकों के प्रबंधन को ठीक करने और उन्हें सक्षम बनाने के लिए नये सिरे से काम करने की आवश्यकता है. ठोस सुधारों और कठोर अनुशासन के अभाव में माल्या जैसे डिफॉल्टर देश को चूना लगाते रहेंगे.

Next Article

Exit mobile version