कश्मीर पर बातचीत की कश्मकश
पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक ब्रिटिश विदेश मंत्री फिलीप हैमोंड ने इस्लामाबाद को अच्छी नसीहत दी है कि ‘नाॅन स्टेट एक्टर’ यानी ‘सरकार से अलग कारनामे करनेवालों’ को भारत-पाक बातचीत से दूर रखें. यह बात पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के वैसे लोग पचा नहीं पा रहे हैं, जो अब तक अलगाववादियों को सिर चढ़ा […]
पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
ब्रिटिश विदेश मंत्री फिलीप हैमोंड ने इस्लामाबाद को अच्छी नसीहत दी है कि ‘नाॅन स्टेट एक्टर’ यानी ‘सरकार से अलग कारनामे करनेवालों’ को भारत-पाक बातचीत से दूर रखें.
यह बात पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के वैसे लोग पचा नहीं पा रहे हैं, जो अब तक अलगाववादियों को सिर चढ़ा कर अपना उल्लू सीधा कर रहे थे. इधर कश्मीर घाटी में अलगाववादी नेताओं को हैमोंड की बातें बिल्कुल पसंद नहीं आयी हैं. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेश नीति सलाहकार सरताज अजीज के साथ साझा प्रेस सम्मेलन में फिलीप हैमोंड ने कहा कि ये ‘नाॅन स्टेट एक्टर’ भारत-पाक बातचीत को हमेशा पटरी से उतार देते हैं. चुनांचे, कश्मीर मसले को बातचीत का अजेंडा नहीं बनाना चाहिए. बातचीत आर्थिक सहयोग, व्यापार और सुरक्षा पर हो. हैमांेड ने दूसरी बात पठानकोट एयरबेस पर हमले की जांच में तेजी लाने को कही. सरताज ने कहा कि जांच टीम जल्द ही भारत जायेगी.
लेकिन, क्या पाक जांच टीम को पठानकोट एयरबेस दिखाना चाहिए? भूलिए नहीं कि 1965 के भारत-पाक युद्ध में पठानकोट एयरबेस पाकिस्तानी एयरफोर्स के सर्वाधिक निशाने पर रहा था.
किसी मुल्क के संवेदनशील ठिकाने प्रतिद्वंद्वी देश के लिए हमेशा जिज्ञासा का विषय रहे हैं. उसका उदाहरण सितंबर 1955 की घटना है. तत्कालीन जर्मन चांसलर कोनराड आडेनावर, सोवियत संघ से संबंध सुधारने के वास्ते मास्को दौरे पर थे. उन्हें ले जानेवाले जहाज में सीआइए का ऐसा कैमरा लगा था, जिसने मास्को के निकट तैनात ‘यो-यो रडार सिस्टम’ की तस्वीर ली थी. डिप्लोमेटिक छूट के कारण किसी विदेशी दल की ज्यादा तलाशी नहीं ले सकते. इसलिए पठानकोट एयरबेस के मुआयने में किस सीमा तक सरकार सावधानी बरतेगी, देश इससे अवगत नहीं है.
कुछ दिन पहले पाकिस्तान ने दस आत्मघातियों के भारत में घुसने की जो सूचनाएं दी थीं, उससे यह भ्रम नहीं पाल लेना चाहिए कि हमारा पड़ोसी भरोसे के लायक है. महाशिवरात्रि पर गुजरात, आंध्र से गोवा तक कुछ हुआ नहीं. अलहमदुलिल्लाह! पर सवाल यह है कि सीमा पार से आये ये दहशतगर्द गये कहां? संभव है कि पाकिस्तान हमारी सतर्कता और सुरक्षा तैयारियों को तोल रहा हो. हमें सावधान रहना चाहिए.
ऊफा से अब तक सरताज अजीज के वक्तव्यों के कुछ हिस्सों पर गौर करें, तो लगता है कि वे स्वयं कश्मीर को बातचीत का अजेंडा बनाने के पक्ष में नहीं हैं. शायद इस कारण उन्हें पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद गंवाना पड़ा. मई 1998 के दौरान पोखरण-2 परमाणु परीक्षण के जवाब में पाकिस्तान ‘छगाई-1 और 2’ के टेस्ट करने की तैयारी में था.
उस समय नवाज शरीफ सरकार में मंत्री रहे सरताज परमाणु परीक्षण के पक्ष में नहीं थे. लेकिन, अब उसी सरताज अजीज ने अमेरिकी विदेश मंत्री जाॅन केरी को जवाब दिया है कि पाकिस्तान परमाणु हथियारों की जमाखोरी पर कोई समझौता नहीं करेगा. लेकिन, गैर-जिम्मेवार पाकिस्तान के एटमी जखीरे को जब्त करने का अंतरराष्ट्रीय अभियान क्यों नहीं छेड़ा जाना चाहिए?
इस समय भारत-पाक बातचीत की शिद्दत दोनों तरफ है. मुश्किल यह है कि जैसे ही बातचीत की तारीख तय होती है, ‘नाॅन स्टेट एक्टर’ सक्रिय हो जाते हैं. इस बार ‘दूसरा पठानकोट’ न हो, इसलिए क्या बातचीत बिना किसी तारीख और जगह की घोषणा किये होगी? शायद ऐसा ही हो. लेकिन, इससे संदेश यह जायेगा कि अलगाववादियों और उनके आकाओं के आगे दोनों मुल्क बेबस हैं!
कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग नहीं माननेवाले अलगाववादियों को जो सुविधाएं केंद्र सरकार देती है, उसे जानने के बाद किसी भी देशवासी को सरकार की दोहरी नीति पर गुस्सा आ सकता है. 24 मार्च, 2013 को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में एक सवाल उठा कि 2001 से 2010 तक हुर्रियत और कश्मीरी अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा पर करदाताओं के साढ़े नौ करोड़ रुपये क्यों खर्च हुए. 2004 के आम चुनाव से पहले केंद्र में भाजपा की सरकार थी, इसलिए इन दिनों उग्र राष्ट्रवाद की आग धधकानेवाली यह पार्टी इस प्रश्न से भाग नहीं सकती. अब भी कश्मीरी अलगाववादी, केंद्र सरकार से तमाम सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं.
उदाहरण के लिए, अगस्त 2015 में हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक को दी गयी ‘जेड प्लस’ सुरक्षा है. उससे पहले मीरवाइज उमर फारूक, केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा प्रदत ‘जेड सुरक्षा’ का आनंद ले रहे थे. पिछले साल मीरवाइज उमर फारूक की सुरक्षा तब अपग्रेड की गयी थी, जब वह पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से बातचीत को लेकर अड़े हुए थे!