बेटी को सशक्त बनाओ!

बच्चे भगवान की देन हैं फिर बेटा-बेटी में भेद क्यों? यह एक कड़वा सच है कि बेटा-बेटी में पैदाइशी फर्क है, स्वभाव, रंग–रूप और रख-रखाव में भी फर्क है़ कभी-कभी इनके सवालों पर मां भी निरुत्तर हो जाती है. वैसे भी महिला-पुरुष का भेद खत्म हो जाये तो शक्ति का रूप किसे मानेंगे? ममता की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 11, 2016 5:13 AM
बच्चे भगवान की देन हैं फिर बेटा-बेटी में भेद क्यों? यह एक कड़वा सच है कि बेटा-बेटी में पैदाइशी फर्क है, स्वभाव, रंग–रूप और रख-रखाव में भी फर्क है़ कभी-कभी इनके सवालों पर मां भी निरुत्तर हो जाती है. वैसे भी महिला-पुरुष का भेद खत्म हो जाये तो शक्ति का रूप किसे मानेंगे? ममता की छांव ढूंढ़े नहीं मिलेगी, भाई दूज का तिलक लगानेवाली बहन कहां मिलेगी?
कोई स्त्री बाप, भाई, पति और बेटे की उपेक्षा कर सशक्त होने का सपना कैसे देख सकती है? वास्तव में यह रिश्ता दो सामाजिक ध्रुवों का बंधन है़ सवाल लिंगभेद का नहीं, सशक्त महिला का है़ बेटियों को ‘सशक्त नारी’ सिर्फ और सिर्फ एक स्त्री बनाती है़ वह स्त्री, जिसे हम मां कहते हैं. क्योंकि फर्क भी बाखूबी वही जानती है़ सशक्त नारी-सशक्त समाज के नारों से आगे सोचना होगा ‘मां आगे आओ, बेटी सशक्त बनाओ’!
एमके मिश्रा, रातू, रांची

Next Article

Exit mobile version