वैश्विक नियमन जरूरी

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के लिए एक समान आचार संहिता बनाने का आह्वान किया है. उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के पास यही विकल्प है कि या तो हम निश्चिंत रहें कि वैश्विक वित्त की बेतरतीब प्रणाली में सबकुछ ठीक है और किसी तरह की बड़ी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 14, 2016 5:18 AM
रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के लिए एक समान आचार संहिता बनाने का आह्वान किया है. उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के पास यही विकल्प है कि या तो हम निश्चिंत रहें कि वैश्विक वित्त की बेतरतीब प्रणाली में सबकुछ ठीक है और किसी तरह की बड़ी गड़बड़ी की कोई संभावना नहीं है, या फिर इक्कीसवीं सदी में परस्पर जुड़ी दुनिया की आवश्यकताओं के अनुरूप एक ठोस तंत्र की स्थापना का प्रयास करें.
पिछले कुछ दशकों में हुए आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के तीव्र विस्तार के कारण अर्थव्यवस्थाओं की परस्पर निर्भरता बढ़ी है तथा एक देश की आर्थिक नीतियों का असर अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ता है.
इसी तरह से केंद्रीय बैंकों के नियम अन्य देशों में निवेश और मुद्राओं के दर को प्रभावित करते हैं. पिछले दिनों अमेरिकी फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ जापान और यूरोपियन सेंट्रल बैंक द्वारा ब्याज दरों और कर्जों के संबंध में उठाये गये कदमों से अंतरराष्ट्रीय वित्त के संचालन और गतिविधियों में बड़ा उलट-फेर हुआ है. इसी तरह से चीन के स्टॉक मार्केट में उथल-पुथल में सरकारी वित्तीय संस्थाओं के मनमाने दखल ने भी चिंताओं को बढ़ाया है. वैश्विक अर्थव्यवस्था फिलहाल मंदी के आसार की आशंका से परेशान है. निर्यात, निवेश और मुद्रा बाजार में निराशा है.
ऐसे में विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा उठाये जा रहे कदम हालात को और अधिक बेचैन बना सकते हैं. यह सही है कि राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर केंद्रीय बैंक नीतियों में फेर-बदल कर सकते हैं और ऐसा करने के लिए उनकी आलोचना करना पूरी तरह से उचित भी नहीं है, पर, जैसा कि राजन पहले भी कहते रहे हैं, किसी भी नियमन से पहले वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उनके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव का आकलन भी अवश्य करना चाहिए.
अल्पकालिक बचाव या लाभ के उद्देश्य से बनायी गयीं नीतियां भारी नुकसान का कारण बन सकती हैं, और देर-सबेर उन बैंकों को भी बुरी दशा का सामना करना पड़ सकता है. वर्ष 2008 की महामंदी इस बात का बड़ा उदाहरण है. ऐसे में केंद्रीय बैंकों के लिए वैश्विक आचार-संहिता बनाने की राजन की सलाह पर गंभीरता से विचार होना चाहिए.

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