प्रगति नहीं, पतन की ओर समाज

कहते हैं समाज में निरंतर प्रगति होती रहती है़ नयी-नयी तकनीकें आती रहती हैं जिससे वस्तुओं व सेवाओं की गुणवत्ता में निरंतर सुधार, और सुधार होता रहता है जिससे संतुष्टि बढ़ रही है़ जबकि लगभग सभी आम उपभोक्ता इस बात पर तो सहमत होते ही रहे हैं कि वस्तुओं व सेवाओं की गुणवत्ता पहले की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 16, 2016 6:24 AM
कहते हैं समाज में निरंतर प्रगति होती रहती है़ नयी-नयी तकनीकें आती रहती हैं जिससे वस्तुओं व सेवाओं की गुणवत्ता में निरंतर सुधार, और सुधार होता रहता है जिससे संतुष्टि बढ़ रही है़
जबकि लगभग सभी आम उपभोक्ता इस बात पर तो सहमत होते ही रहे हैं कि वस्तुओं व सेवाओं की गुणवत्ता पहले की अपेक्षा आज उतनी उन्नत नहीं रही, वरन गिरती ही गयी है, जिससे असंतुष्टि बढ़ रही है़ जब भी इसका कारण कोई जानना चाहा है तो भ्रामक विज्ञापनों में अधूरे वैज्ञानिक तर्कों द्वारा लालच के मुखौटे में छिपा दिया जाता है़
प्रकृति आधारित जीवनशैली की उपेक्षा कर भोगवाद को अपनाने से महंगाई का बढ़ना इसका मूल कारण है़ अब प्रश्न उठता है कि क्या समाज में आंखों से दिख रही प्रगति वास्तव में प्रगति है या फिर प्रगति के भ्रामक आवरण में लिपटे पतन का दॄश्य? विचारें.
ज्ञानदीप जोशी, कोकर, रांची, ई-मेल से

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