शहरों की बेहतरी जरूरी

केंद्र सरकार के भारत के नव-निर्माण के विजन में जिन बातों पर बहुत जोर हैं, उनमें एक है ‘स्मार्ट सिटी’ को बसाना और बसे हुए शहरों को ‘स्मार्ट’ बनाना. लेकिन शहरों के स्मार्ट होने का क्या अर्थ निकाला जाये? ज्यादातर शहरवासी ‘सिटी’ के स्मार्टनेस को साफ-चमकदार चौड़ी सड़क, अबाधित परिवहन, चौबीस घंटे पानी-बिजली की आपूर्ति […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 16, 2016 6:29 AM
केंद्र सरकार के भारत के नव-निर्माण के विजन में जिन बातों पर बहुत जोर हैं, उनमें एक है ‘स्मार्ट सिटी’ को बसाना और बसे हुए शहरों को ‘स्मार्ट’ बनाना. लेकिन शहरों के स्मार्ट होने का क्या अर्थ निकाला जाये?
ज्यादातर शहरवासी ‘सिटी’ के स्मार्टनेस को साफ-चमकदार चौड़ी सड़क, अबाधित परिवहन, चौबीस घंटे पानी-बिजली की आपूर्ति और पर्याप्त संख्या में स्कूल-कॉलेज, अस्पताल तथा मनोरंजन के ठीहों की मौजूदगी से जोड़ कर देखते हैं. विरले अवसरों पर ही लोगों के ध्यान में यह बात आती है कि दरअसल ये बातें बुनियादी तौर पर नगर-योजना का हिस्सा हैं और नगर-योजना स्वयं नगर-प्रशासन के भीतर ही आकार लेती है.
इसलिए किसी शहर के स्मार्टनेस का आकलन वहां मौजूद सेवा-सुविधाओं के विस्तार और गुणवत्ता के आकलन से कम और नगरीय जीवन को साकार करनेवाली नीतियों, कानूनों और इन पर होनेवाले अमल तथा उसकी प्रक्रियाओं से करना कहीं ज्यादा उचित है. शहरों के स्मार्टनेस के आकलन की इसी विधि का पालन करते हुए स्वयंसेवी संगठन जनाग्रह के 21 शहरों के एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि रोजमर्रा के जीवन को सुगम बनाने की व्यवस्था करने के मामले में भारतीय शहर अभी लंदन या न्यूयार्क जैसे शहरों से बहुत पीछे हैं.
रोजमर्रा के जीवन को सुगम बनाने के मामले में सर्वेक्षण में ज्यादातर भारतीय शहरों ने 10 अंकों के पैमाने पर 2 से 4.2 का अंकमान हासिल किया है, जबकि लंदन और न्यूयार्क जैसे शहरों का अंकमान 9 से ज्यादा है. नगर-योजना और नगर-प्रशासन के प्रश्न से यह कह कर मुंह नहीं चुराया जा सकता कि नयी सरकार ने सिटी बसाने की जिस योजना का एेलान किया है, वे रोजमर्रा के जीवन को सुगम बनाने के लिए की जानेवाली व्यवस्थाओं के मामले में सर्वथा दोषमुक्त होंगे.
मूसलाधार बारिश के बीच चेन्नई की बदहाली या बारिश में डूबती मुंबई और पानी के लिए तरसती दिल्ली से संबंधित खबरों से यह अनुमान तो निकाला ही जा सकता है कि शहरवासियों की समस्या के समाधान के मामले में जोर लक्षणों के उपचार करने का रहा है, रोग को जड़ से मिटाने का नहीं.
बारिश में जल-जमाव से बाढ़ जैसे हालात पैदा होने पर जल-निकासी की व्यवस्था की याद आती है और अदालत से बार-बार फटकार खाने के बाद नगर-प्रशासकों को याद आता है कि शहरों को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए त्वरित तौर पर कुछ करने की जरूरत है. उम्मीद की जानी चाहिए कि स्मार्ट सिटी की योजना इन खामियों को ध्यान में रख कर ही साकार की जायेगी.

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