गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रश्न

परीक्षा के सवाल विद्यार्थियों को कठिन लगें तो बात समझ में आती है, लेकिन सवालों की कठिनाइयों का मसला क्या इतना गंभीर माना जा सकता है कि उस पर संसद में नेता बहस करें और बहस पक्ष-प्रतिपक्ष के नेताओं के बीच इस सहमति के बीच खत्म हो कि जिस परीक्षा में कठिन सवाल पूछे जाने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 18, 2016 6:33 AM

परीक्षा के सवाल विद्यार्थियों को कठिन लगें तो बात समझ में आती है, लेकिन सवालों की कठिनाइयों का मसला क्या इतना गंभीर माना जा सकता है कि उस पर संसद में नेता बहस करें और बहस पक्ष-प्रतिपक्ष के नेताओं के बीच इस सहमति के बीच खत्म हो कि जिस परीक्षा में कठिन सवाल पूछे जाने की शिकायतें आयी हैं, उसमें विद्यार्थियों को राहत देने के लिए सीधे मंत्रालय से बात की जायेगी?

क्या इसे देश की नौजवान पीढ़ी के प्रति राजनेताओं के अत्यंत संवेदनशील और जवाबदेह होने का लक्षण माना जाये? मामला सीबीएससी की 12वीं की परीक्षा के गणित के सवालों का है. परीक्षार्थियों को शिकायत है कि सवाल सिलेबस से बाहर के आये, कुछ ज्यादा ही कठिन और लंबे थे. प्रश्नपत्र लीक होने की बात भी उठायी गयी. विद्यार्थियों की शिकायत में कुछ भी नया नहीं है. परीक्षार्थी को परीक्षाएं हमेशा से कठिन लगती रही हैं.

चूंकि नौकरी की परीक्षाओं की तरह बोर्ड की परीक्षाओं के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि उनका उद्देश्य अंकों के मुकाबले में सबसे ज्यादा अंक लानेवाले यानी योग्यतम को चुनने का होता है, इसलिए दसवीं या बारहवीं की परीक्षा के बारे में यह निष्कर्ष निकालना तनिक हड़बड़ी होगी. सवाल योग्यतम की उत्तरजीविता वाले तर्क से पूछे गये थे, ताकि अधिकतर विद्यार्थी अधिकतर सवालों का हल ना कर सकें.

विद्यार्थियों को फिर भी सवाल कठिन या अबूझ लगे, तो परीक्षा को रद्द करना या परीक्षाफल के अंकों में राहत देने जैसे उपाय करने की जगह शिक्षा-प्रणाली की खोट को दूर करने के मूलगामी सवाल पर सोचा जाना चाहिए था. विद्यार्थी तैयारी के अभाव में सवाल को कठिन पाते हैं और यह इस एक बात का संकेत है कि पढ़ाई की व्यवस्था यानी किताबें, शिक्षक, स्कूल, पाठ्यचर्या और अपने बच्चों से अभिभावकों की बढ़ती अपेक्षाओं में किसी-ना-किसी अर्थ में दोष मौजूद है.

परीक्षा रद्द करना या अंकों में राहत देना दरअसल, रोग का नहीं उसके लक्षणों का उपचार करना है. सवालों के कठिन लगने की असल वजह है गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी और हमारी संसद में राजनेताओं ने यों तो परीक्षार्थियों का हैतैषी बन कर हर उपाय सोचा, सिवाय इस एक उपाय के कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा विद्यार्थियों को कैसे मुहैया करायी जाये.

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