खुशियों पर बट्टा

पर्याप्त आर्थिक विकास सुख की आकांक्षाओं की पूर्ति तो कर सकता है, पर कोई भी समाज सिर्फ इस आधार पर खुशहाल नहीं हो सकता है. खुशियों के लिए अनेक पैमाने हैं और सभ्यतागत प्रगति का आकलन सही मायनों में इन्हीं आधारों पर किया जा सकता है. वैश्विक स्तर पर खुशहाली के ताजा आकलन में कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 18, 2016 6:34 AM
पर्याप्त आर्थिक विकास सुख की आकांक्षाओं की पूर्ति तो कर सकता है, पर कोई भी समाज सिर्फ इस आधार पर खुशहाल नहीं हो सकता है. खुशियों के लिए अनेक पैमाने हैं और सभ्यतागत प्रगति का आकलन सही मायनों में इन्हीं आधारों पर किया जा सकता है.
वैश्विक स्तर पर खुशहाली के ताजा आकलन में कुछ देश शीर्ष पर हैं, तो कुछ निचले पायदान पर. सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क और कोलंबिया विवि के द अर्थ इंस्टीट्यूट द्वारा कुल 157 देशों के अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट में भारत 118वें स्थान पर है. एक चिंताजनक तथ्य यह भी है कि हमारा देश वेनेजुएला, सऊदी अरब, मिस्र, यमन और बोत्स्वाना जैसे उन 10 देशों में शामिल है, जहां खुशियों में सबसे अधिक कमी हुई है.
पाकिस्तान (92), सोमालिया (76), चीन (83), ईरान (105), फिलस्तीनी क्षेत्र (108) और बांग्लादेश (110) जैसे देश भी भारत से आगे हैं. खुशहाली रिपोर्ट देशों के सकल घरेलू उत्पादन की प्रति व्यक्ति दर, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, परस्पर सामाजिक निर्भरता, सरकार और व्यापारिक गतिविधियों में भरोसा, निर्णय लेने की स्वतंत्रता, उदारता जैसे कारकों का अध्ययन करती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के वर्षों में अनेक देशों ने तेजी से बढ़ती विषमता, गंभीर सामाजिक बहिष्करण और पर्यावरण के भयावह नुकसान की कीमत पर आर्थिक विकास हासिल किया है. इससे मानवीय जीवन की गुणवत्ता पर घातक असर होता है और लोगों का जीना दूभर हो जाता है. कोस्टारिका किसी भी लिहाज से धनी देश नहीं है, पर इस सूची में वह 14वें स्थान पर है, जबकि अमेरिका (13), ब्रिटेन (23), फ्रांस (32) और इटली (50) जैसी आर्थिक महाशक्तियों का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है. जिन देशों में सामाजिक सद्भाव, परस्पर भरोसा और सरकार में विश्वास उच्च स्तर पर हैं, वे शीर्ष पर हैं.
इनमें डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडेन और न्यूजीलैंड शामिल हैं. खुशहाली रिपोर्ट भारत समेत उन अनेक देशों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो सिर्फ उत्पादन की दर को विकास का सूचक मानते हैं. हमें सामाजिकता, समानता और सहभागिता के साथ पर्यावरण की रक्षा के प्रति भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है.
ऐसे में देश में हाल के दिनों में घटी घटनाएं समुचित विकास की राह में बाधक हैं. उम्मीद है कि सरकार और समाज को परस्पर पूरक की भूमिका निभाते हुए प्रत्येक नागरिक के जीवन-स्तर को सर्वांगीण रूप से संतोषजनक बनाने की दिशा में निरंतर प्रयासरत होंगे.

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